________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 55 है। इससे प्रमाणित होता है कि आत्मा अनेक हैं। आत्मा के अस्तित्व के प्रमाण
न्याय में आत्मा के अस्तित्व के कई प्रमाण दिये गये हैं, जो निम्न हैं -
1 इच्छा और द्वेष से आत्मा का अस्तित्व प्रमाणित होता है। किसी वस्तु की इच्छा का कारण है, भूतकाल में उस तरह की वस्तु को देखकर जो सुख मिलता था, उसका स्मरण होना। किसी वस्तु की इच्छा होना यह प्रमाणित करता है कि जिस आत्मा ने भूतकाल में किसी वस्तु को देखकर सुख का अनुभव किया था, वह आज भी उस तरह की वस्तु को देखकर उससे प्राप्त सुख का स्मरण करता है। इसी प्रकार किसी वस्तु के प्रति द्वेष होना भी उस प्रकार की वस्तु से भूतकाल में जो दुःख मिला था, उसके स्मरण पर निर्भर है। स्थायी आत्मा के बिना इच्छा और द्वेष सम्भव नहीं हैं। .
2 सुख और दुःख भी आत्मा के अस्तित्व को प्रमाणित करता है। जब किसी वस्तु को देखने से आत्मा को सुख और दुःख का अनुभव होता है तो इसका अर्थ यह है कि आत्मा को उस समय यह स्मरण हो जाता है कि भूतकाल में उस तरह की वस्तु से उसे सुख या दुःख मिला था।
3 ज्ञान से भी आत्मा की सत्ता प्रमाणित होती है। हमें किसी चीज को जानने की इच्छा होती है। इसके बाद हमें संशय होता है कि सामने वही चीज है अथवा दूसरी, अन्त में हमें उस चीज का निश्चयात्मक ज्ञान होता है। जिसे इच्छा होती है, जो संशय करता है और जो अन्त में निश्चयात्मक ज्ञान प्राप्त करता है, वह एक ही आत्मा है।
4 चार्वाक का कहना है कि चैतन्य शरीर का गुण है। न्याय इस मत : का खण्डन करता है, यदि चैतन्य शरीर का आवश्यक गुण होता तो मृत्यु के बाद भी उसमें यह गुण बना रहता तथा जीवन काल में चैतन्य का नाश नहीं होता, परन्तु मृत्यु और मूर्छा यह प्रमाणित करता है कि शरीर चैतन्यरहित हो जाता है। अतः चैतन्य को शरीर का आवश्यक गुण कहना भ्रामक है। यदि चैतन्य को शरीर का आगन्तुक गुण माना जाए तो उसके उदय होने का कारण शरीर से भिन्न कोई चीज होनी चाहिए। इससे प्रमाणित होता है, चैतन्य शरीर का गुण नहीं है।
5 चैतन्य को ज्ञानेन्द्रियों का गुण मानना भ्रामक है। ज्ञानेन्द्रियाँ