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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
है। यद्यपि ईश्वर विश्व की सृष्टि अनेक द्रव्यों के माध्यम से करता है, फिर भी ईश्वर की शक्ति सीमित नहीं हो पाती। ये द्रव्य ईश्वर की शक्ति को सीमित नहीं करते, क्योंकि ईश्वर और इन द्रव्यों के बीच आत्मा और शरीर का सम्बन्ध है। यद्यपि सृष्टि का उपादान कारण चार प्रकार के परमाणुओं को ही ठहराया जा सकता है, फिर भी ईश्वर का हाथ सृष्टि में अनमोल है । परमाणुओं के संयोजन से सृष्टि होती है परन्तु ये परमाणु गतिहीन माने गये हैं।
परमाणुओं में गति का संचालन ईश्वर के द्वारा होता है । अतः ईश्वर के अभाव में सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जगत की व्यवस्था और एकता का कारण परमाणुओं का संयोग नहीं कहा जा सकता । सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ व्यक्ति ईश्वर है । इस प्रकार विश्व की सृष्टि ईश्वर के सर्वशक्तिमान और सर्वत्र होने का प्रमाण है | 22 ईश्वर विश्व का पालनकर्ता भी है। वह विश्व की विभिन्न वस्तुओं को स्थिर रखने में सहायक होता है । यदि ईश्वर विश्व को धारण नहीं करे तो समस्त विश्व का अन्त हो जाए । विश्व को धारण करने की शक्ति सिर्फ ईश्वर में ही है। ईश्वर को सम्पूर्ण विश्व का ज्ञान है। ईश्वर की इच्छा के बिना विश्व का एक पत्ता भी नहीं गिर सकता ।
उदयनाचार्य ने न्यायकुसुमांजलि में ईश्वर का वर्णन इस प्रकार
किया है
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ईश्वरोऽयं निराधारः सर्वज्ञः सर्वशक्तिमान् । अनादिरविकारी चानन्तः सर्वगतो विभुः । । सच्चिदानन्दरूपोऽपि दयालुन्यायतत्परः । सर्गे स्थितो लये हेतुः नित्यं तृप्तो निराश्रयः । ।
अर्थात् ईश्वर निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अनादि, अनन्त, सर्वव्यापक, सच्चिदानन्दरूप, दयालु, न्यायकारी तथा सृष्टि की रचना, पालन एवं संहार का हेतु है। वह सदा तृप्त है, किसी के आश्रय में नहीं रहता । संक्षेप में ईश्वर के विषय में न्याय की यही मान्यता है ।
न्याय दर्शन के आत्मा, बन्धन एवं मोक्ष सम्बन्धी विचार
आत्म विचार-न्याय के मतानुसार आत्मा एक द्रव्य है। सुख-दुःख, - द्वेष, इच्छा, प्रयत्न और ज्ञान आत्मा के गुण हैं । धर्म और अधर्म भी आत्मा के गुण हैं और शुभ, अशुभ कर्मों से उत्पन्न होते हैं ।
राग