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24 . कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना जाता है, क्योंकि ये भाव तीर्थंकर प्रकृति के बंध के कारण हैं। सोलहकारण निम्न हैं-'दर्शनविशुद्धि, विनयसंपन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचार, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तिस्त्याग, तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अर्हद्भक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुतभक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यका-परिहाणि, मार्गप्रभावना और प्रवचनवात्सल्य ।"25
___द्यानतराय ने भी सोलह कारण पूजन की स्थापना में सोलह कारण को तीर्थंकर प्रकृति का कारण माना है -
सोलहकारण भाय तीर्थकर जे भये । हरसे इन्द्र अपार मेरु पै ले गये ।। पूजा करि निज धन्य लखौं बहु चाव सौं।
हमहूँ षोडश कारण भावै भाव सौं ।।26
इन सोलह कारण भावनाओं को ध्याने से मोक्षफल की प्राप्ति बताते हुए द्यानतरायजी ने लिखा है -
एही-सोलह भावना, सहित धरै व्रत जोय।
देव इन्द्र नर वन्द्य पद, 'द्यानत' शिव पद होय।।
(5) पंचमेरु पूजन-पंचमेरु पूजन में द्यानतरायजी ने पंचमेरु पर स्थित अस्सी जिनचैत्यालयों में विराजित जिन प्रतिमाओं की स्तुति की है
तीर्थंकरों के न्हवन जलतें भये तीरथ सर्वदा। तातै प्रदच्छन देत सुरगन पंचमेरुन की सदा। दो जलधि ढाई द्वीप में सब गनत मूल विराजहीं। पूजौं असी जिनधाम प्रतिमा होहिं सुख, दुख भाजहीं।।
इस पूजन में अष्टक चौपाई आँचलीबद्ध छन्द में लिखित है तथा जयमाला बेसरी छन्द में लिखित है। जयमाला के अन्तिम पद में घानतराय ने पंचमेरु की आरती को पढ़ने सुनने से होने वाले महासुख की चर्चा की है -
पंचमेरु की आरती, पढ़े सुने जो कोय।
'द्यानत' फल जाने प्रभु, तुरत महासुख होय ।। .
(6) देव-शास्त्र-गुरु पूजा - इस पूजन में देव-शास्त्र-गुरु की स्तुति की गयी है। देव-शास्त्र-गुरु स्तुति में द्यानतरायजी ने लिखा है कि
... प्रथम देव अरहन्त सुश्रुत सिद्धान्त जू । : गुरु निरग्रन्थ महन्त मुकतिपुर पन्थ जू ।।