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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 39 मानव को संसार में आसक्त करता है, का निःशेषीकरण दार्शनिक तत्त्व ज्ञान के द्वारा ही हो सकता है।13
भारतीय दर्शनों का ऐतिहासिक क्रम जैसा कि भारतीय दर्शनों को दो भागों में विभक्त किया गया है - आस्तिक और नास्तिक। ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर प्रतीत होता. है कि इन दोनों के सिद्धान्त यद्यपि बहुत प्राचीन हैं, क्योंकि भारतीय साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ वेदों में हमें दोनों ही दर्शन सम्प्रदायों के सिद्धान्तों का उल्लेख मिलता है, किन्तु दार्शनिक साहित्य का अनुशीलन हमें बताता है. कि एक विशिष्ट दर्शन के रूप में सांख्य दर्शन का उद्भव सबसे पहले हुआ, यह दूसरी बात है कि उक्त दर्शन के निरूपक ग्रन्थ बहुत बाद में मिलते हैं।
यह समय निश्चय ही ईसा से हजारों वर्ष पूर्व रहा होगा। इसके, बाद ही कुछ शताब्दियों में वैदिक विचारधाराओं से भिन्नता रखने वाली विचार धाराओं का दर्शन होता है, जिनके उदाहरण चार्वाक और आजीवक दर्शन के रूप में हमें आज उपलब्ध हैं। यद्यपि ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी के उत्तरार्द्ध में भी हमें चार्वाक जैसे दार्शनिकों का स्वर सुनाई पड़ता है, किन्तु पहले की अपेक्षा कुछ मन्द रूप में, किन्तु इसके साथ ही कुछ अन्य अवैदिक धाराओं का स्वर भी सुनाई पड़ने लगा, जिनका प्रतिनिधित्व जैन और बौद्ध करते थे। इनमें भी कालक्रम की दृष्टि से जैनदर्शन का स्थान बौद्ध दर्शन की अपेक्षा पहले का है। इसके बाद सांख्येतर वैदिक दर्शनों का उदय किस क्रम से हुआ इस सम्बन्ध में भारतीय दर्शन के अप्रतिम विद्वान डॉ. आर. के. आचार्य की निम्नलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं -
"वैदिक परम्परा का चार्वाक, जैन, बौद्ध आदि वैदिकोत्तरों के द्वारा प्रबल विरोध होने पर ईसा पूर्व की सहस्राब्दी के उत्तरार्द्ध में ही मूलतः वैदिक: विचारधाराओं से सम्बन्ध रखनेवाली, किन्तु बाद में स्वतन्त्र रूप से विकसित होने वाली विचारधाराओं के समर्थकों को अपनी विचारधाराओं को न्यायसूत्र और वैशेषिक सूत्र आदि विभिन्न दर्शन सूत्रों के रूप में व्यवस्थित कर दिया . और अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हुए चार्वाक, जैन और बौद्ध आदि . विरोधियों के मतों का यथासम्भव निराकरण किया और जैसा कि इनके द्वारा भी मूल वैदिक विचारधाराओं की रक्षा नहीं हो पाती थी, अतः विशुद्ध वैदिक क्षेत्र के आचार्यों में से, एक ओर तो आचार्य जैमिनी ने वैदिक कर्मकाण्ड को दार्शनिक आधार देने के लिए पूर्व मीमांसा सूत्रों की रचना की और दूसरी