________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 37 जगत् से सम्बद्ध समस्याओं पर विचार करती हैं। यद्यपि इनके विकास क्रम को देखने पर इनमें अखण्डता ही दृष्टिगोचर होती है, तथापि अध्ययन की सुविधा और तन्मतावलम्बियों एवं प्रतिपादकों के भेद के आधार पर इनका वगीकरण कर लेना अत्यन्त उचित होगा।
प्राचीन वर्गीकरण-जैसा कि मध्यकाल में 'षड्दर्शन' के नाम से कुछ दर्शन धाराओं को एक विशिष्ट वर्ग में रखने का प्रयत्न किया गया था, किन्तु उनमें किस-किस दर्शन को रखा जाये, इस सम्बन्ध में कोई निश्चय नहीं हो सका था। इसके साथ ही दर्शनों की संख्या के सम्बन्ध में भी ऐकमत्य नहीं था। आचार्य कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र में केवल सांख्य, योग और लोकायत इन तीन दर्शनों की चर्चा करते हैं। 'शिवमहिम्नः स्तोत्र' में सांख्य, योग, पाशुपत और वैष्णव दर्शनों का ही उल्लेख है।
___ शंकराचार्य ने 'सर्वसिद्धान्त संग्रह' में न्याय, वेशैषिक आदि के अतिरिक्त आहेत (जैन) बौद्ध, चार्वाक आदि दस दर्शनों का उल्लेख किया है। जयन्त भट्ट ने बौद्ध और चार्वाकों के साथ केवल चार-मीमांसा, न्याय, वैशेषिक और सांख्य दर्शनों का ही उल्लेख किया। बारहवीं सदी के जैनाचार्य हरिभद्र सूरि ने अपने ‘षड्दर्शनसमुच्चय' में बौद्ध, नैयायिक कपिल (सांख्य) जैन, वैशेषिक तथा जैमिनि (मीमांसा)- इन षड्दर्शनों का वर्णन किया।
___ तेरहवीं सदी के प्रसिद्ध जैन लेखक जिनदत्तसूरि ने भी अपने 'षड्दर्शनसमुच्चय' में प्रसिद्ध षड्दर्शनों में से केवल मीमांसा और सांख्य को ही लिया और शेष चार में जैन, बौद्ध, शैव और चार्वाक को सम्मिलित किया। इसके बाद लिखे गए, माधवाचार्य के 'सर्वदर्शन संग्रह में प्रसिद्ध दर्शनों के साथ ही रामानुजीय पूर्णप्रज्ञ (माध्य) नकुलीश (पाशुपत) शैव, प्रत्यभिज्ञा (काश्मीर शैव) रसेश्वर (आवधूतिक) और पाणिनीय आदि कुल 26 दर्शनों का विवरण प्रस्तुत किया है। इस प्रकार से कुछ अन्य ग्रन्थों में भी भिन्न-भिन्न संख्या और भिन्न-भिन्न नाम वाले दर्शनों को स्थान मिला है।
इन भारतीय दर्शनों का एक और वर्गीकरण हो सकता है। हम जानते हैं कि इनमें से कुछ आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ का उसकी सत्ता में विश्वास नहीं है। इस आधार पर इनके अनात्मवादी और आत्मवादी ये दो वर्ग सरलता से बन जाते हैं। इनमें से पहले वर्ग में चार्वाक और बौद्ध दर्शन आयेंगे और शेष सब दूसरे वर्ग में। इस प्रकार एक विशिष्ट तत्त्व की मान्यता और अमान्यता के आधार पर किया गया यह वर्गीकरण सभी को मान्य हो सकता है।12