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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 35 सच्चिदानन्दात्मरूप स्थिति को मुक्ति मानते हैं। स्पष्ट है कि प्रत्येक दर्शन की दृष्टि में मुक्ति का स्वरूप भिन्न है, किन्तु उसकी स्थिति को सभी प्रमुख रूप से स्वीकार करते हैं।
4. पुनर्जन्म की धारणा:-आत्मा के द्वारा एक शरीर के परित्याग और दूसरे शरीर को ग्रहण करने का क्रम निरन्तरं चलता रहता है। इसे ही जन्म और मृत्यु कहा गया है। गीता के अनुसार उत्पन्न जीव की मृत्यु और मृत का जन्म अनिवार्य है-"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युधुवं जन्म मृतस्य च।" इस अदृष्ट रूप कर्म के तीन रूप हैं-क्रियमाण, संचित और प्रारब्ध।
5. 'आत्मा' की स्वीकृति :-चूँकि पुनर्जन्म का आधार 'आत्मा' ही है, इसलिए प्रायः सभी दर्शन 'आत्मा' के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। बौद्ध आत्मा के अस्तित्व को तो नहीं मानते, किन्तु उसका कार्य उन्होंने पंचस्कन्धों के द्वारा सम्पादित कर लिया है। आत्मरूप इस एक विशिष्ट तत्त्व को स्वीकार करने पर भी भिन्न-भिन्न दर्शनों में उसके स्वरूप के सम्बन्ध में मतभेद है।
- जैन दर्शनानुसार आत्मा शब्द का अर्थ निम्न प्रकार से है- 'अस्' धातु का अर्थ 'सतत गमन' है। 'गमन' शब्द का यहाँ 'ज्ञान' अर्थ होता है; क्योंकि 'सब गतिरूप अर्थवाले धातु ज्ञानरूप अर्थवाले होते हैं-ऐसा वचन है। इस कारण, यथासंभव ज्ञान सुखादि गुणों में 'आ' अर्थात् सर्वप्रकार से 'अतति अर्थात् वर्तता है, वह आत्मा है अथवा शुभ-अशुभ मन-वचन-काय की क्रिया द्वारा यथासम्भव तीव्र-मंदादिरूप से जो 'आ' अर्थात पूर्णरूप से 'अतति' वर्तता है, वह आत्मा है अथवा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों धर्मों द्वारा जो 'आ' अर्थात् पूर्णरूप से 'अतति' अर्थात् वर्तता है, वह आत्मा है। 10
सांख्य दर्शन में यह पुरुष के रूप में स्वीकार किया गया है। यह उसके अनुसार नित्य, विभु, चैतन्य और अकर्ता है। योगदर्शन की भी यही मान्यता है। मीमांसा उसके विभुत्व और नित्यत्व को स्वीकार करती है, किन्तु चैतन्य को उसका आगन्तुक धर्म मानती है। वेदान्त के अनुसार आत्मा नित्य, शुद्ध, बुद्ध और सच्चिदानन्द स्वरूप है। न्याय–वैशेषिक आत्मा को नित्य और अविनाशी तो मानते हैं, किन्तु इसके साथ ही उसे सुख-दुःख आदि गुणों से युक्त भी मानते हैं। इस प्रकार उनकी दृष्टि में आत्मा सगुण है, वेदान्तादि उसको निर्गुण मानते हैं। बौद्ध दर्शन में आत्मा की स्वीकृति साक्षात् न मानी जाकर ज्ञान, अनुभूति और संकल्प के क्षण-क्षण में परिवर्तनशील विज्ञान सन्तान के रूप में मानी गई है।