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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना देती है तथा साधर्मी की संगति के महत्त्व को अभिव्यक्त करती है ।
पदसंग्रह–प्रायः द्यानतरायजी के पद यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं। विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा विभिन्न पद विभिन्न नामों से संग्रहीत कर प्रकाशित कर दिये गये हैं। इसी कड़ी में एक पद संग्रह बहुत पहले प्रकाशित हो चुका है। इसमें 17 पद हैं। इनका विषय जिनदेव, जिनवाणी, जिनगुरु, जिनधर्म आदि की भक्ति से सम्बन्धित है । अनेक पद आध्यात्मिक भावों के भी द्योतक हैं। एक पद संग्रह साहित्य शोध विभाग, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी से प्रकाशित है, जिसमें द्यानतरायजी के पद संग्रहीत हैं। एक और पद संग्रह जो श्री पाटनी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मारोठ (मारवाड़) से प्रकाशित है, जिसमें द्यानतरायजी के द्यानत विलास के 40 पद संग्रहीत हैं। द्यानतरायजी के कुछ पद' अध्यात्म पद - पारिजात' में भी प्रकाशित हैं ।
बावनियाँ -द्यानतरायजी ने दो बावनियाँ लिखी हैं, जिसमें पहली अक्षर बावनी तथा दूसरी दान बावनी है। बावनियों में कवि ने आध्यात्मिक भावों से गर्भित विषयों पर बावन छन्द लिखे हैं, जिसके कारण इनका नाम बावनी रखा गया है ।
कवि द्वारा रचित उपर्युक्त सभी फुटकर रचनाएँ मुक्तक काव्य के अन्तर्गत ही आती हैं। ये सभी रचनाएँ हिन्दी साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं ।
सन्दर्भ सूची
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1. चरचा शतक
आमुख, पृष्ठ-2
2. चरचा शतक, पद- 12, 13, 14, पृष्ठ - 26 से 31
3. चरचा शतक, पद- 44, पृष्ठ - 105
4. हिन्दी साहित्य कोश भाग-1, पृष्ठ- 691, द्वितीय संस्करण, काशी
5. एक कविकृत श्लोक समूह या मुक्तक समुच्चय (कोश) का नाम पद्यट्टक है। हिन्दी साहित्य कोश भाग-1, पृष्ठ - 275
6. पद्मनन्दि पंचविंशति ( उपासक संस्कार ) पृष्ठ - 128, श्लोक - 6
7. भगवती आराधना, विजयोदया टीका, गाथा - 46
8. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक - 119 की टीका, पृष्ठ-208 | 9. स्वयंभू स्तोत्र, छन्द-571