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कविवर धानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 25
तीन रतन जगमाहिं सु ये · भवि ध्याइये। . ..... तिनकी भक्ति · प्रसाद परम पद पाइये ।।28.
इस पूजन के अष्टक दोहा एवं हरिगीतिका छन्द में लिखे गये हैं एवं जयमाला पद्धरि छन्द में है।
... (7) विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजा-द्यानतरायजी की यह पूजन विदेहक्षेत्र में विद्यमान त्रिकालवर्ती बीस तीर्थंकरों की स्तुति के लिए है। वे बीस तीर्थंकर निम्न हैं-श्री सीमन्धर, युगमन्धर, बाहु, सुबाहु, संजातक, स्वयंप्रभ, वृषभानन, अनन्तवीर्य, सूरप्रभ, विशालकीर्ति, वज्रधर, चन्द्रानन, भद्रबाहु, भुजंगम, ईश्वर, नेमिप्रभ, वीरसेन, महाभद्र, देवयश और अजितवीर्य ।20 :
- इस पूजन में भी पद्धति अनुसार स्थापना छन्द, अष्टक एवं जयमाला है। जयमाला चौपाई छन्द में लिखी गयी है।
(8) सरस्वती पूजन-धानतरायजी की यह पूजन जिनवाणी की स्तुति में लिखी गयी है। जिनवाणी की स्तुति करते हुए पूजन की स्थापना में लिखा है -
जनम जरा मृतुं क्षय करै, हरै कुनय जड़ रीति।
भव सागर सौं ले तिरै, पूजै जिनवच प्रीति ।।30 • इस पूजन में जिनवाणी की स्तुति परक अष्टक लिखे गये हैं व . जयमाला में जिनवाणी के बारह अंगों का वर्णन किया गया है। पूजन की. स्थापना में दोहा व अष्टक में त्रिभंगी छन्द का प्रयोग किया. है.। जयमाला सोरठा व चौपाई छन्द में लिखी गयी है। .. (७) श्री निर्वाण क्षेत्र पूजन-द्यानतरायजी ने इस पूजन में निर्वाण . क्षेत्रों को पूजा है। जिन-जिन स्थानों से तीर्थंकर व अन्य मुनि मोक्ष गये हैं, उन-उन क्षेत्रों को धन्य मानते हुए उनकी स्तुति की गयी है। वे क्षेत्र निम्न
सम्मेद शिखर, गिरनार, चम्पापुर, पावापुर एवं कैलाश पर्वत । जैसा कि पूजनं की पंक्तियों में भी वर्णित है
शुचि क्षीर दधि सम नीर निरमल कनक झारी में भरौं । संसार पार उतार स्वामी, जोड़ कर विनती करौं ।। सम्मे दगढ़ गिरनार चम्पा पावापुरी कैलाश कौं।