Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक १
___ भावार्थ - गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी अन्यतीर्थियों को, गृहस्थ को, याचकों को और पार्श्वस्थ आदि शिथिलाचारियों को अशन पान खादिम और स्वादिम आहार स्वयं न दे और न दूसरों से दिलवावें। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि मुनि को अपने संभोगी साधु के अतिरिक्त अन्यमत के साधुओं को आहार आदि नहीं देना चाहिए। अन्यमत के साधुओं को, गृहस्थ को, याचकों को अथवा पार्श्वस्थ-शिथिलाचारी साधुओं को अशनादि देने से संयम में अनेक दोष लगने की संभावना रहती है।
। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविटे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा पाणं वा, खाइमं वा साइमं वा अस्संपडियाए एर्ग साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताई सभारब्भ समुहिस्स कीयं, पामिच्चं, अच्छिज्जं, अणिसिटुं, अभिहडं, आहट्ट चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा, पाणं वा, खाइम वा, साइमं वा, पुरिसंतरकडं वा, अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा, अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा, अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा, अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा, अणासेवियं वा, अफासुयं जाव णो पडिग्गाहिज्जा। - एवं बहवे साहम्मिया, एगं साहम्मिणिं, बहवे साहम्मिणीओ, समुहिस्स चत्तारि आलावगा भाणियव्वा॥६॥ ... कठिन शब्दार्थ - अस्संपडियाए - साधु की प्रतिज्ञा से (साधु के निमित्त), एगं - एक, साहम्मिय- साधर्मिक को, समुहिस्स - उद्देश्य करके, पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई - प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का, समारब्भ - समारंभ करके, कीयं - क्रीत-साधु के निमित्त से खरीदा हुआ, पामिच्चं - उधार लिया हुआ, अच्छिज्ज - दूसरों से छीना हुआ, अणिसिटुंस्वामी की स्वीकृति के बिना दिया हुआ, अभिहडं- सामने लाया हुआ, आहट्ट - लाकर,
एइ - देता है, तं - वह, तहप्पगारं- इस प्रकार का, पुरिसंतरकडं- पुरुषान्तरकृत-दूसरे को दे दिया गया, अपुरिसंतरकडं- अपुरुषान्तरकृत-दूसरे को नहीं दिया गया, णीहडं - निकाला हुआ, अणीहडं - नहीं निकाला हुआ, अत्तट्ठियं - अपना किया हुआ, स्वीकृत, अणत्तट्ठियं - बिना अपनाया हुआ, परिभुत्तं - अपने उपयोग में लिया हुआ, अपरिभुत्तं - नहीं भोगा हुआ, साहम्मिणिं - एक साध्वी के लिए, चत्तारि - चार, आलावगा - आलापक, भाणियव्वा - कहने चाहिये।
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