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युगवीर - निवन्धावली
३ - जिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराणमे लिखा है कि चारुदत्त सेठने अपने मामाकी लडकीसे विवाह किया, समुद्रविजयादिने अपनी पाँच कन्याओका विवाह अपने भानजे पाडवोके साथ किया, जरासिधुने अपनी लडकी जीवंयशाकी शादी अपने भानजे कंसके साथ की, महावीरस्वामीके फूफा जितशत्रुने अपनी पुत्री अशोकवतीका विवाह महावीरस्वामीसे करना चाहा । इसी प्रकार और भी अनेक ग्रन्थोमे सैकडो कथायें मौजूद हैं, जिनसे ऐसे विवाह सम्बन्धोका होना पाया जाता है । इससे साफ प्रगट है कि इस प्रकारके विवाह सम्बन्ध जो आजकल बहुधा गर्हित समझे जाते हैं उनका पहले आम रिवाज था ।
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४ - - उक्त हरिवंशपुराणमे यह भी लिखा है कि वसुदेवजी - का विवाह देवकीसे हुआ । देवकी राजा उग्रसेनकी लडकी और महाराजा सुवीरकी पड़पोती ( प्रपौत्री ) थी ओर वसुदेवजी महाराजा सूरके पोते थे । सूर ओर सुवीर दोनो सगे भाई थे अर्थात् श्री नेमिनाथके चाचा वसुदेवजीने अपने चचाजाद भाईकी लड़की से विवाह किया । इससे प्रगट है कि उस समय विवाहमे गोत्रका विचार व बचाव नही किया जाता था । नही मालूम परवारोमे आजकल आठ-आठ वा चार-चार साकें ( शाखाएँ . ) किस आधार - पर मिलायी जाती हैं ?
५ -- भगव ज्जिनसेनाचार्य आदिपुराणमे लिखते हैं कि प्रजाको बाधा पहुँचानेवाले ऐसे म्लेच्छोको कुलशुद्धि आदिके द्वारा अपने बना लेने चाहिये, जिससे प्रगट है कि म्लेच्छ लोग केवल जैनी ही नही हो सकते, बल्कि उनकी कुलशुद्धि भी हो सकती है । यथा-"स्वदेशेऽनक्षरम्लेच्छान्प्रजावाधाविधायिनः । कुलशुद्धिप्रदानाद्यै स्वसात्कुर्यादुपक्रमैः ॥"