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युगवीर-निवन्धावली
दरकार है। उसीको वे लोग मांग रहे हैं। उनको हस्तावलम्बन दीजिये । हेयोपादेयका विचार उनके सम्मुख उपस्थित कीजिये। शास्त्रोके प्रमाण दिखलाइये । उनका हृदय-स्थल शास्त्र-प्रमाणोको आश्रय देनेके लिये अब तैयार होता जाता है । इस समय समाजसशोधको और जाति-हित चाहनेवालोका यह मुख्य कर्तव्य है कि वे खुले दिलसे रूढियोका विवेचन प्रारम्भ करें, सर्वसाधारणको बतलावे कि किसी व्यक्तिके किसी व्यवहारको कैसे रूढता प्राप्त हुआ करती है, कैसे उसका रिवाज पड जाता है । एक रूढि जो एक देश और एक कालमें लाभदायक होती है वही दूसरे देश और दूसरे कालमे कैसे नुकसान देनेवाली है ? रूढ़ियोका धर्मसे क्या सम्बन्ध है ? वे धर्मका कोई अग हैं या नही ? आम्नाय और प्रवृत्तियाँ देश-कालके अनुसार, धर्मके मूल सिद्धान्तोकी रक्षाका खयाल रखते हुए हमेशा बदला करती हैं या नहीं ? सघ, गच्छ और गण आदिके भेद किस बातको बतला रहे हैं ? इत्यादि समस्त वातोका यथार्थ ज्ञान लोगोको करावें और इस प्रकार लोगोका भ्रम दूरकर उनके उत्थानका यत्न करें । उनको रूढियोके इस भारी दलदलसे निकालनेकी कोशिश करे। यही दया, यही धर्म, और यही इस समयका मुख्य कर्तव्य-कर्म है। इसीमे जातिका मगल, इसीमें जातिका कल्याण और इसीपर जातिमें फिरसे सच्चे धार्मिक भावोकी सृष्टि होनेका दारमदार है । मैं खयाल करता हूँ कि हमारे विचारशील परोपकारी जरूर इसपर ध्यान देंगे और कदापि इस बहुमूल्य अवसरको नही चूकेगे।
अब मैं कुछ प्रमाण पडितजीकी भेंट करता हूँ। आशा है कि वे निष्पक्ष भावसे उनपर विचार करेगे ।