________________
शुभचिह
२३
१-~मगवज्जिनसेनाचार्यने 'आदिपुराण'में और श्री सोमदेवयूरिने 'नीतिवाक्यामृत में लिखा है कि ब्राह्मण चारो वर्णकी, क्षत्रिय ( ब्राह्मणको छोडकर शेष ) तीन वर्णकी, वैश्य (ब्राह्मण, क्षत्रियको छोडकर शेप ) दो वर्णकी और शूद्र केवल अपने ही एक वर्णकी कन्यासे विवाह कर सकता है -
"शुद्रा गद्रेण वोदव्या नान्या स्वा ता च नैगम । वहेत्वा ते च राजन्य. स्वां द्विजन्मा कचिश ता ॥ १६-२४७
( आदिपुराण) "आनुलोम्येन चतुत्रिद्विवर्णकन्याभाजना ब्राह्मण-मत्रिय-विशः।"
(नीतिवाक्यामृत) इन प्रमाणोसे प्रगट है कि गोट तो गोट, जाति तो जाति, एक वर्णवाला दूसरे वर्णकी कन्यासे भी विवाह कर सकता है।
२--श्रीसोमदेवमूरिने यशस्तिलकमे लिखा है कि जैनियोको वे समस्त लौकिक-विधियां-लोक-प्रवृत्तियां--लौकिकाचार प्रमाण हैं जिनसे उनके सम्यक्त्वमें हानि वा व्रतमे दूषण न आता हो .
"सर्व एव हि जैनानां, प्रमाण लौकिको विधिः । यत्र सम्यक्त्व-हानिर्न, यत्र न व्रत-दूपणम् ।।"
( यशस्तिलक ) अव आप विचार लेवे कि जिन खंडेलवाल वा परवारादि वर्तमान जातियोके श्रद्धा-विषय और व्रत भिन्न नहीं है, बल्कि एक ही हैं, उनमें विवाह-सम्बन्ध होनेसे सम्यक्त्वादिमें कोई वाधा आवेगी या नहीं ? साथमें यह भी खयाल रहे कि भरत, शांति, कुन्यु, अरह आदि चक्रवर्तियोने म्लेच्छोकी कन्यामोसे भी विवाह किया है और नेमिनाथके चाचा वसुदेवजीने भी एक म्लेच्छ राजाकी कन्यासे, जिसका नाम जरा था, विवाह किया था।