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विषाह-क्षेत्र प्रकाश । प्रसिद्ध कथा है। यह सेठ जिस वेश्या पर प्रासक्त होकर वर्षोंतक उसके घरपर, बिना किसी भोजन पानादि सम्बन्धी भेदके, एकत्र रहा था और जिसके कारण वह एक बार अपनी संपूर्ण धनसंपत्तिको भी गँवा बैठा था उसकानाम 'वसंतसेना' था। इस वेश्याकी माताने, जिस समय धमाभाव के कारण चारुदत्त सेठको अपने घरसे निकाल दिया और वह धनोपार्जन के लिये विदेश चला गया उस समय वसंतसेनाने, अपनी माताके बहुत कुछ कहने पर भी, दूसरे किसी धनिक पुरुषसे अपना संबंध जोडना उचित नहीं समझा और तब वह अपनी माताके घरका ही परित्याग कर चारुदत्तके पीछे उसके घरपर चली गई। चारुदत्तके कुटुम्बियोंने भी वसंतसेनाको श्राश्रय देनेमें कोई आनाकानी नहीं की । वसन्तसेनाने उनके समुदार श्राश्रयमें रहकर एक आर्यिका के पाससे श्रावकके १२ व्रत ग्रहण किये, जिससे उसको नीचपरिणति पलटकर उच्च तथा धार्मिक बन गई और वह चारुदत्तको माता तथा स्त्रीकी सेवा करती हुई निःसंकोच भाव से उनके घरपर रहने लगी। जब चारुदत्त विपुल धन सम्पसिका स्वामी बनकर विदेश से अपने घरपर वापिस आया और उसे वसंतसेनाके स्वगृह पर रहने आदि का हाल मालूम हुआ तब उसने बड़े हर्षके साथ वसंतसेना को अपनाया अर्थात, उसे अपनी स्त्री रूपसे स्वीकृत किया। चारुदत्तके इस कृत्य पर-अर्थात. एक वेश्या जैसी नीच स्त्री को खुल्लमखुल्ला घरमे डाल लेनेके अपराध पर—उस समयको जाति-बिरादरीने चारुदत्तको जातिसे व्यत अथवा बिरादरी से खारिज नहीं किया और न दूसरा ही उसके साथ कोई घणा का व्यवहार किया गया। वह श्रीनेमिनाथ भगवान के चचा वसुदेवजी जैसे प्रतिष्ठित पुरुषोंसे भी प्रशंसित और सम्मानित रहा। और उसकी शुद्धता यहाँ तक बनी रही कि वह