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कुटम्बमें विवाह।
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चलकर स्पष्ट किया जायगा । साथ ही, उत्तरपुराण और जिन. सेन के हरिवंशपुराण की सम्मिलित रोशनी से दूसरे प्रमाणों पर भी यथेष्ट प्रकाश डाला जायगा। यहांफर, इसवक्त मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि समालोचकजीने लेखकको सम्बोधन करके उसपर यह कटाक्ष किया है कि वह पं० गजाधरलालजी के भाषा किये हुए हरिवंशपुराण के कछ अगले प्रष्टोको यदि पलटकर देखता तो उसे पता लगजाता कि उसके ३३६ वे पृष्ठकी २४ वीं लाइनमें स्पष्ट लिखा है कि"रानी नन्दयशा इस दशाण नगरमें देवसेनकी धन्या
नामक स्त्रीसे यह देवकी उत्पन्न हुई है।" घेशक, समालोचकजी! लेखकको इस भाषा हरिवंशपुराण के पृष्टीको पलटकर प्रकृत पृष्ठको देखनेका कोई अवसर नहीं मिला । परन्तु अब आपकी सचनाको पाकर जो उसे देखा गया तो उसमें बड़ीही विचित्रताका दर्शन हुआ है। वहाँ पं० गजाधरलालजी ने उक्त वाक्यको लिये हुए, एक श्लोकका जो अनुयाद दिया है वह इस प्रकार है :
"और गनी नंदयशाने उन्हीं पुत्रों की माता होने का तथा रेवती धायने उनकी धाय होने का निदान बाँधा। सो ठोकही है ---पुत्रों का स्नेह छोड़ना बड़ा ही कठिन है। इसके बाद वे सब लोग समीचीन तपके प्रभावसे महाशक स्वर्गमे सोलहासागर श्रायुके भाक्ता देव हुये। वहाँसे श्रायके अन्त में चयकर शंख का जीव गहिणीसे उत्पन्न बलभद्र हुआ है। रानी नंदयशा श्रेष्ठ इस दशाण नगरमें देवसंनकी धन्या नामक स्त्रीसे यह देवको उत्पन्न हुई है और धाय भद्रिलसा नगरमें सुदृष्टी नामक सेठकी अलका नामकी स्त्री हुई है।१६७॥"