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असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह ।
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यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक जाति अथवा कुलकी रक्त शुद्धि, बिना किसी मिलावटके, अक्षरणं चलीभाती है उसकी पुष्टि में नीचे लिखा वाक्य उद्धृत किया है :
अनादाविह संसारे दुर्वारे मकरध्वजे । .. कुले च कामिनीमले का जातिपरिकल्पना ॥
और इस वाश्यके द्वारा यह सूचित किया है कि जब संसार में अनादि कालसे कामदेव दुर्निवार चला पाता है और कलका मल भी कामिनी है, तब किसी 'जाति कल्पना' को क्या महत्व दिया जा सकता है और उसके आधार पर किसी को क्या मद करना चाहिये' ? अतः जाति-विषयक मद त्याज्य है। उसके कारण कमसे कम सधर्मियों अथवा समान प्राचार को पालने वाली इन उपजातियों में पारस्परिक (अन्तर्जातीय) सविवाहोंके लिये कोई रुकावट न होनी चाहिये । प्रस्तु।
उपसंहार और निवेदन । इस सब कथन और विवेचनसे. मैं समझता, पाठकों पर समालोचनाकी सारी असलियत खल जायगी, उसकी निःसारता हस्तामलकघत होजायगी और उन्हें सहज ही में वह मालूम पड़ जायगा कि प्राचीन काल में विवाहका क्षेत्र कितना भधिक विस्तीर्ण था और वह अाजकल कितना संकीर्ण बना दिया गया है। साथही, इस प्रकाश द्वारा विवाह क्षेत्रका धना. धिकार दूर होने से वे अपने विवाह-क्षत्रके गढ़दी, संदकों, बाहयों और कण्टको आदिका अच्छा अनभव भी प्राप्त कर सकेंगे उन्हें यह मालूम हो सकेगा कि वे पढ़ आदि कहाँ