Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 174
________________ उपसंहार और निवेदन । इस भोलेपन की वजह से ही वे समालोचक तथा समालोचक जीके सहायक एक दूसरे विद्वानके कुछ कहने सुनने में श्रागये है और इस तरह पर व्यर्थ ही बीच में एक हथियार बना लिये गये हैं । अन्यथा, उनमें शास्त्रार्थ की कोई स्पिरिट - चेतना, बुति अथवा उत्साहपरिणति नहीं पाई गई। समालोचना के प्रकाशित होने के बाद से में दो बार देहली गया हूं और वहाँ लमातार २२ तथा २० दिनके करीब ठहरा हूँ: पं० महबूब सिंहजी कितनी ही बार बड़े प्रेम के साथ मुझसे मिले परन्तु उन्होंने कभी शास्त्रार्थ को कोई इच्छा प्रकट नहीं की और न 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' या उसकी समालोचना के विषय में कोई चर्चा हो की । इससे पाठक सहज ही में उनकी मनःपरिणतिका अच्छा अनु मान कर सकते हैं और यह जान सकते हैं कि चैलेंज में उनका नाम देकर उनके भोलेपनका कितना दुरुपयोग किया गया है । प्रस्तु; समालोचनाके प्रकाशित होनेके बाद जयलक मेग देहली आना नहीं हुआ तब तक मुझे कुछ सज्जनोंकी श्रोरसे यही समाचार मिलते रहे कि शास्त्रार्थ के लिये बहुत कोलाहल मचाया जा रहा है और यहभी कहा जाता है कि यदि शास्त्रार्थ नहीं करोगे तो कोर्ट में नालिश करदी जायगी। इसके उत्तर में मैंने उन्हें यही सूचित कर दिया कि मैं आजकल के शास्त्रार्थी को पसंद नहीं करता, उनमें वस्तुतत्वका निर्णय करना कोई इष्ट नहीं होता किन्तु जय पराजयके ओर ही दृष्टि रहती है और हर एक पक्षका व्यक्ति किसी न किसी तरह हुल्लड़ मचाकर अपने पक्षका प्रयोग करना चाहता है; नतीजा जिसका यह होता है कि बहुत से लोगों में परस्पर वैमनस्य बढ़ जाता है और लाभ कुछ भी होने नहीं पाता । अतः मैं समालोचनाका विस्तृत उत्तर लिवंगा जिससे सबको लाभ पहुँचेगा । उन्हें यदि कोर्ट में जाने का शौक है तो में खुशी से जायें, मैं उनके इस कृत्यका ܕܘܕ

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