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असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह ।
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बड़ा अन्तर्जातीय विवाह था। उसके मुकाबले में तो यह आर्यों मार्योकी जातियों अगवा उपातियोंके अन्तर्जातीय विवाह कुछ भी गणना में गिने जानके योग्य नहीं है। इसके सिवाय, पहले भूमिगोचरियों के साथ विद्याधगेंके विवाह सम्बंधका श्राम दस्तर था, और उनकी कितनी ही जातियोंका वर्णन शास्त्रों में पाया जाता है। घसदेवजी ने भी अनेक विद्याधर कन्याप्रोसे विवाह किया था, जिनमें एक 'मदनवेगा' भी थी भीर षा श्रीजिनसेनाचार्य के कथनानुसार गौरिक जातिके विद्याधर की कन्या थी। वसदेवजी म्पयं गौरिक जातिके नहीं थे और इसलिये गौरिक जातिकी विद्याधर-कन्यासे विवाह करके उन्होंने, उपजातियोंकी दृष्टिमें भी, म्पष्ट रूपसे अन्तर्जातीय विवाह किया था, इसमें संदेह नहीं है. श्रावके तेजपाल यस्तपाल वाले जैन मंदिरमें एक शिलालेख संवत् १२६७ का लिखा हुआ है, जिससे मालमहाता है कि प्राग्वाट (पोरवाड) जातिके तेजपाल जैनका विवाह 'मोढ' जातिको सहडा देवीसे हुआ था । इस लेख का एक अंश, जो जैनमित्र (ता. २३ अप्रेल सन १९२५) में प्रकाशित हुआ, इस प्रकार है :___ "ॐ संवत २६७ वर्षे वैशाख सुदी १४ गरी प्राग्वाट झातोन चंड प्रचंड प्रसादमहं श्री सोमान्वयेमहं श्री असगज सत महं श्रीतेजःपालन श्रीमत्पत्तन वास्तव्य मोढ, ज्ञातीय ४० जाल्हण सत ठ०पाससताया: ठकराज्ञी संतोषा कक्षिसंभतायाः महंश्री तेजःपाल द्वितीय भार्या महंश्री सहडादेवया:श्रेयार्थ..."
यह, आधनिक उपजातियों में, आजसे करीब ७०० वर्ष पहले के अन्तर्जातीय विवाहका एक नमूना है और तेजपाल नामके एक बड़े ही प्रतिष्टित तथा धर्मात्मा पुरुष द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इसी तरह के और भी कितने ही नमने खोज करने पर मिल सकते हैं। कुछ उपजातियों में तो अब भी अन्तर्जातीय