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विवाह-क्षेत्र प्रकाश ।
पिताको अतिकष्टका कारण हुआ और अपनी प्राकृतिसे प्रत्युग जान पड़ताथा, इसलिये पैदा होतेही एक मंजूषा बन्द करके इसे यमुनामें बहा दियागया था। दैवयोगसे, कौशाम्बी में यह एक कलाली (मद्यकारिणी) के घर पला, शस्त्रविद्यामें वसुदेवका शिष्य बना और वसुदेव की सहायतासे इसने महाराज जरासंधके एक शत्रुको बाँधकर उनके सामने उपस्थित किया । इसपर जरासंधने अपनी कालिदसेना रानीसे उत्पन्न 'जीवद्यशा' पत्रीका विवाह कससे करना चाहा । उसवक्त कंस का वंश-परिचय पाने के लिये जब वह मद्यकारिणी बलाई गई और वह मंजपा सहित आई तो उस मंजुषाके लेखपरसे जरासंधको यह मालूम हुआ कि केस मेरा भानजा है मेरी बहन पदमावतीसे उग्रसेन द्वारा उत्पन्न हुआ है और इसलिये उसने बड़ी खशी के साथ अपनी पत्रीका विवाह उसके साथ कर दिया । इस विवाह के अवसर पर कंसका अपने पिता उग्रसेनकी इस निदं यताका हाल मलूम करके–कि उसने पैदा होते ही उसे नदीमें बहादिया-बड़ा क्रोध श्राया और इसलिए उसने जरासंधसे मथुराका राज्य मांगकर संना श्रादि साथ ले मथराको जा घेरा । और वहाँ पिताको युद्धमै जीतकर बाँध लिया तथा अपना वंदी बनाकर उसे मथुराक द्वारपर रक्खा । इस पिछली बानको जिनसेनाचार्यन नीचे लिखे तीन पद्यों में जाहिर किया है :
'सद्योजातं पिता नद्यां मुक्तवानिति च कुधा । वरीत्वा मथुरां लब्ध्वा सर्वसाधनसंगतः ॥ २५ ॥ कंसः कालिन्दसेनायाः सुतया सह निघणः । गत्वा यद्ध विनिर्जित्य बबन्ध पितरं हतं ॥ २६ ॥