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म्लेच्छोसे विवाह । सेनाचार्य के वाक्योंसे सिद्ध की जा चुकी है । अब मैं इस भ्रमको भी दूरकर देना चाहता हूँ कि जैनियों के द्वारा माने हुए *नेच्छ: खण्डोंमें आर्य जनताका भी निवास है :
श्रीअमृतचन्द्राचार्य, तत्वार्थसारमें, मनुष्योंके आर्य और मेच्छ ऐसे दो भेदोका वर्णन करते हुए, लिखते हैं :
आर्यखण्डोद्भवा पायर्या म्लेच्छाः केचिच्छकादयः। म्लेच्छखण्डोद्भवाम्लेच्छाअन्तर्वीपजा अपि ॥२१२।। अर्थात्-आर्य खण्डमें जो लोग उत्पन्न होते है.वे 'आर्य' कहलाते हैं परन्तु उनमें जो कुछ शकादिक (+शक, यवन, शवर पुलिन्दादिक) लोग होते हैं वे म्लेच्छ कहे जाते हैं और जो लोग म्लेच्छखण्डोंमें तथा अन्तर्वीपोंमें उत्पन्न होते हैं उन सबको 'म्लेच्छ' समझना चाहिये।
इससे प्रकट है कि आर्य खण्डमें जो मनुष्य उत्पन्न होते हैं वे तो आर्य और म्लेच्छ दोनों प्रकारके होते हैं, परन्तु म्लेच्छखंण्डोंमें एकही प्रकारके मनुष्य होते हैं और वे म्लेच्छ ही होते हैं । भावार्थ, म्लेच्छोंके मूल भेद तीन हैं १ श्रार्य खण्डोद्भव, २ म्लेच्छखण्डोद्भव x, ३अन्तीपज और पार्योका मूलभेद एक आर्यखण्डोद्भव ही है। जब यह बात है तब म्लेच्छखण्डों में आर्य राजाओका होना और उनकी कन्याओंसे चक्रवर्ती श्रादिका
*अाधुनिक भूगोलवादियोंको इन म्लेच्छ खगडोंका अभी तक कोई पता नहीं चला। अब तक जितनी पृथ्वीको खोज हुई है वह सब, जैनियोंकी क्षेत्र गणना के अनुसार अथवा उनके मापकी दृष्टिसे, आर्य खण्डके ही भीतर आ जाती है।
+ यथा :-"शकयवनशवरपलिंदादयः म्लेच्छाः ” xइन पहले दो भेदोका नाम 'कर्मभूमिज' भी है।