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विवाह क्षेत्र-प्रकाश ।
दूसरे पद्यमें भी इन लोगों के प्राचारको ग्लेच्छाचारकी उपमा दी गई है, लिखा है कि 'तुम निव्रत हो (अहिंसाविव्रततों के पालनसे रहित हो), निमस्कार हो, निर्दय हो, पशघाती हो
और ( इसी तरह के और भी ) म्लेच्छाचार में परायण हो, तुम्हें धार्मिक द्विज नहीं कह सकते । यथाःनिव्रता निर्नमस्कारा निघणाः पशुपातिनः । म्लेच्छाचारपरा ययं न स्थाने धार्मिकद्विजाः ॥ १६० ।।
इससे भी हिंसा में रति' आदि म्लेच्छों के साधारण प्राचारका पता चलता है। परन्तु इतने पर भी समालोचकजी लेखक की इस बात को स्वीकार करते हुए कि 'अच्छे अच्छे प्रतिष्ठित, उचकलीन और उत्तमोत्तम परुषों ने म्लेच्छराजाओं की कन्याओं से विवाह किया है" लिखते हैं:
"ठीक है हम भी इस बातको मानते हैं कि चक्रवर्ती म्लेच्छखंड के राजाओं की कन्याओंसे विवाह कर लाते थे लेकिन वे क्षेत्रको अपेक्षा से म्लेच्छ राजा कहाते थे । यह बात नहीं है कि उनके आचरण भी नीच हो या वे माँसखोर व शराबखोर हो अथवा
आपके लिखे अनसार हिंसामें रति मांसभक्षण में प्रीति रखने वाले और जबरदस्ती दूसरोका धन हरण करने वाले हो। बाबू साहब आपको लिखो हुई यह बात उन म्लेच्छ गजाओं में कभी नहीं थी। आपने जो म्लेच्छों के आचरण संबन्धी श्लोक दिया है वह केवल जनतामे भ्रम फैलाने के लिये ऊपर नीचे का संबन्ध छाड़कर दिया है”। इसके बाद म्लेच्छोंके इस प्राचार की कुछ सफाई पेश करके, आप फिर लिखते हैं: