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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश।
जो यह लिखने का कष्ट उठाया है कि " नीच हम [उसे तबही मान सकते है जवकि उस कन्याके जीवन चरितमें कुछ नीचता दिखलाई हो,” इसका क्या अर्थ है वह कुछ समझमें नहीं पाता । क्या समालोचकजी इसके द्वारा यह प्रतिपादन करना चाहते हैं कि किसी तरह पर अच्छे संस्कारों मेंरहने के कारण नीच जातिमें उत्पन्न हुई कन्याओं के जीवनचरित में यदि नीचताकी कोई बात न दिखलाई पड़ती हो तो हम उन्हें ऊँच मानने, उनसे ऊँच जातियों की कन्याओं जैसा व्यहार करने और ऊँच जाति वाला के साथ उनके विवाह-सम्बंधको उचित ठहराने के लिये तय्यार है ? यदि ऐसा है तब तो श्राप का यह विचार कितनी ही दृष्टियों से अभिनंदनीय होसकताहै, और यदि वैसा कुछ श्राप प्रतिपादन करना नही चाहते तो आप कायह लिखना बिलकुल निरर्थक और अप्रासंगिक जान पड़ता है।
हमारे समालोचजीको एक बड़े फिक्रन और भी घेरा है और वह है भरत चक्रवर्तीका म्लेच्छ कन्याओंसे माना हुश्रा (almitt (d) विवाह । आपकी समझमें.म्लेन्छोको उच्चजातिके न मानने पर यह नामुमकिन (असंभव) हैं कि भरतजी नीच जाति की कन्याासे विवाह करते, और इसीलिये आप लिखते हैं:"यह कभी संभव नही हो सकताकि जो भरत गहस्था.
वस्थामै अपने परिणाम ऐसे निर्मल रखते थे कि जिन्हें दीक्षा लेतही केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया और जिनके लिये "भरत घरमें ही वैरगो" आदि अनेक प्रकारकी स्तुतिए प्रसिद्ध हैं वे भरत नीच कन्याओं से विवाह करें। ऐसे महापुरुषों के लिये नीच कन्याओं के साथ विवाह की बात कहना केवल उनका
अपमान करना है उन्हें कलंक लगाना है।" इसके उत्तरमें हम सिर्फ इतनाही कहना चाहते हैं कि