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ध्यभिचारजातों और दस्सों से विवाह । . १३७
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जायगी। दस्सोसे विवाह करना प्रात्मपत्नका अथवा प्रान्मोन्नतिमें बाधा पहुँचानेका कोई कारण नहीं होसकता । दरसों में अच्छे अच्छे प्रतिष्ठित और धर्मात्माजन मौजद है-वे बीसीसे किसी बातमें भी कम नहीं हैं-उन्हें हीन दृष्टिसे देखना अथवा उनके प्रति सद्भाव रखना अपनी क्षद्रता प्रकट करनाहै। अस्तु । ___ यह तो हुई तृतीय अंशके श्राक्षेपोंकी बात, अब उदाहरण का शेष चौथा अंश –'गहिणीका स्वयंवर' भी लीजिये।
स्वयंवर-विवाह। उदाहरणका यह चौथा अंश इस प्रकार लिखा गयायाः
"रोहिणी अरिष्टपर के राजाको लड़की और एक सुप्रतिठित घराने की कन्या थी। इसके विवाहका स्वयंवर रचाया गया था, जिसमें जरोसन्धादिक बड़े बड़े प्रतापी राजा दूर देशान्तरों से एकत्र हुए थे। स्वयंवरमण्डप में वसुदेवजी, किसी कारण विशेष से अपना वेष बदल कर 'पणव' नाम का पादित्र हाथ में लिये हुए एक ऐसे रङ्क तथा अकुलीन बाजन्त्री (बाजा बजाने वाला) के रूप में उपस्थित थे कि जिससे किसी को उस वक्त वहाँ उनके वास्तविक कुल, जाति आदि का कुछ भी पता मालम नहीं था । रोहिणी ने सम्पूर्ण उपस्थित राजाओं तथा राजकुमारी का प्रत्यक्ष देखकर और उनके वंश तथा गणादिका परिचय पाकर भी जब उनमें से किसीको भी अपने याग्य घर पसंद नहीं किया तब उसन, सब लोगोको आश्चर्य में डालते हुए, बड़े ही निःसंकोच भावले उक्त बाजन्त्री रूप के धारक एक अपरिचित और अज्ञात-कुल-जाति नामाव्यक्ति (घसुदेव ) के गले में ही अपनी वरमाला डाल दी।