Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 154
________________ गोत्र-स्थित और सगोत्र-विधाह। २५१ विवाह करके सगोत्र विवाह कर रहे हैं, यह कहना चाहिये । (२) खंडेलवाल जातिके जैन इतिहाससे पता चलता है कि एकसमय राजा खंडेलगिरकी राजधानीखोलानगर और उसके शासनाधीन =३ ग्रामों में महामारी का बड़ा प्रकोप हुश्रा और वह नरमेध यज्ञ तक कर देनेपर भी शांत न होता हुश्रा, बहुत कुछ हानि पहुँचाकर, अन्तको श्रीजिनसेनस्वामीकं प्रभावसे शांत हुश्रा। इस अतिशयको देख कर ८४ ग्रामोके राजाप्रजा सभी जन जैनी होगये और श्रीजिनसेनस्वामी ने उनके ८४ गोत्र नियत किये । गोत्रों में ‘सहा' गोत्रको छोउ कर जो खंडेलानगरके निवासियों तथा राजकल के लिये नियत किया गयाथा, शेष ३ गात्रोंका नामकरण प्रामीके नामों पर हुश्राअर्थात् , एक एक ग्राम के रहने वाले सभी जैनियों का एक एक गोत्र स्थापित किया गया। जैसे पाटनके रहनेवालोका गोत्र 'पाटनी' अजयरके रहने वालोका 'अजमेरा', बाकली ग्रामके निवासियोंका 'बाकली वाल और कासली गाँवके निवासियों का गोत्र कासलीवाल नियत हुआ । इन गोत्रों में सोनी,लहाहा, चौधरी आदि कुछ गोत्रोंक विषयमें विद्वानीका यह भी मत है कि वे व्यापार, पेशा या पदस्थको हाटसे रक्ख हुए नाम हैसोने का व्यापार तथा काम करने वाले 'सोनी', लाहेका व्यापार तथा काम करने वाले 'लुहाडा' और चौधरीक पद पर प्रतिष्ठित 'चौधरी' कहलाये । परन्तु कुछ भी सही, इतना तो स्पष्ट है कि इन सब लोगोंके पुराने गोत्र कायम नहीं रहे और ८४ नये गोत्रों की सृष्टि हुई । एक गोत्रके लोग प्रायः अनेक ग्रामोमें रहतहे और एक ग्राममें अक्सर अनेक गोत्रोके लोग रहा करते हैं । जब गांवीका नामकरण ग्रामोके नामों पर हुश्रा, एक ग्रामफे रहने वाले जैनियोका एक गोत्र कायम किया गया और अपने अपने उस गोत्रको छोड़ कर खंडेलवाल लोग दूसरे

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