________________
विवाह क्षेत्र प्रकाश।
है। और इससे अनुलोम विधाहके साथ साथ प्रतिलोम विवाह का भी खासा विधान पाया जाता है। अर्थात्, क्षत्रियके लिये ब्राह्मणकी और वैश्यके लिये क्षत्रिय तथा ब्राह्मण दोनोंकी कन्याओसे विवाहका करना उचित ठहराया गया है। जैनकथा ग्रंथोंसे भी प्रतिलाम विवाहका बहुत कुछ पता चलता है, जिसके दो एक उदाहरण नीचे दियं जाते हैं :--
(१) वसुदेवजीन, जो स्वयं क्षत्रिय थे, विश्वदेव ब्राह्मण की क्षत्रिय स्त्रीसे उत्पन्न ' सोम श्री नामकी कन्यासे-उसे वेदविद्यामें जीतकर ---विवाह कियाथा। जैसाकि श्रीजिनसेनाचार्य कृत हरिबंशपुराण ( २३ वै सर्ग ) के निम्न पाक्यों से प्रकट है:
अन्वये तनु जातेयं क्षत्रियायां सुकन्यका । सोमश्रीरिति विख्याता विश्वदेवद्विजन्मिनः ॥४६॥ करालब्रह्मदत्तेन मुनिना दिव्यचक्षुषा । वेटेजंतुः समादिष्टा महतः सहचारिणी ॥५०॥ इति श्रुत्वा तदाधीत्य सर्वान्वेदान्यवृत्तमः । जित्वा सोमश्रियं श्रोमानुपयेमे विधानतः ॥५१।।
इन पाक्योंस अनुलोम और प्रतिलोम दोनों प्रकारके विषाहोंका उल्लेख मिलता है।
(२) श्रीकृष्ण ने अपने भाई गजकुमारका विवाह, क्षत्रिय राजाओंकी कन्याओंके अतिरिक्त, साम शर्मा ब्राह्मणकी पुत्री 'मामा' से भी किया था, जिसका उल्लेख जिनसेनाचार्य और जिनदास ब्रह्मचारी दोनोंके हरिवंश पुराणों में पाया जाता है। यहाँ जिनदास ७० के हरियशपराणसे एक पद्य नीचे दिया जाता है :