Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 157
________________ १५४ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। जैन धर्म ग्रहण किया और सरिजीने उसका महाजन वंश तथा ‘कुकडबोपडा' गोत्र स्थापित किया। मंत्री ने भी धर्म ग्रहण किया और उसका गोत्र 'गणधर चोपडा' नियत किया गया। कुकडचोपडा गोत्रको बादका चार शाखाएँ हुई जिनमेसे एक 'कोठारी 'शाखा भी है जो इस वंशके एक 'ठाकरसी' नामक व्यक्ति से प्रारंभ हुई। ठाकरसीका राव चंडेने अपना कोठार नियत किया था तभी से ठाकरसीको संतानवाले 'कोठारी' कहलाने लगे। २ घाडीवाल गोत्र--डीडी नामक एक स्वीची राजपूत धाड़ा मारताथा । उसको वि० सं० ११५५ में जिनवल्लभ सरिने प्रतिबोध देकर उसका महाजन वंश और 'धाडीवाल' गोत्र स्थापित किया। ३ नालाणी आदि गोत्र-लालसिंहको जिन पशभरिने प्रतिबोध देकर उसका ‘लालाणी' गोत्रा स्थापित किया और उसके पाँच बेटोसे फिर वांठिया, जोरापर, विरमेचा, हरखा. चत, और मल्लावत गोत्र चले। इसी तरह एक 'काला' व्यक्ति की औलादवाले 'काला' गोत्री कहलाये। ४ पारख गोत्र-पासजीने एक हीरको परख की थी उसी दिनसे राजा द्वारा 'पारख' कहे जानेके कारण उनको संतान के लोग पारख गोत्री कहे जाने लगे। ___५ लूणावत प्रादि गोत्र-' लूणे' के वंशज ‘लणावत' गोत्री हुए परन्तु बादको उसके किसी वंशजके युद्धसे न हटने पर उसकी संततिका गात्र नाहटा' होगया । और एक दसरे वंशजको किसी नवाब ने 'रायजादा' कहा । इससे उसका गोत्र रायजादा' प्रसिद्ध हुभा। ६ रतनपुरा और कटारिया गोत्र-चौहान राजपूत रतनसिंहको, जिसने रतनपुर बसाया था जिनदत्त सूरिने जैनी

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