Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 122
________________ म्लेच्छों से विवाह | १९६ प्रायः श्रार्य खण्डों में माना जाता था *-- म्लेच्छ खण्डों में नहीं । म्लेच्छखण्डों में तो संस्कार जन्मले उत्पन्न होनेवाली सजातिका भी सद्भाव नहीं बनता; क्योंकि वहाँकी भूमि धर्म कर्म के अयोग्य है-- उसका वातावरणही बिगड़ा हुआ है। हाँ, वहाँके जो लोग यहाँ श्राजाते थे वे संस्कारके बलस सज्जातिमें परिणत किये जा सकते थे और तब उनकी म्लेच्छसंज्ञा नहीं रहती थी । यहाँ की जो व्यक्तियाँ शरीरजन्मसे श्रशुद्ध होती थी उन्हें भी अपने धर्म में दीक्षित करके. संस्कार जन्म के योग से सज्जानिमें परिणत कर लिया जाताथा और इस तरह परनीचों को ऊँच बना लिया जाताथा। ऐसे लोगों का वह संस्कार जन्म' योनिसंभव' कहलाता था + | म्लेच्छा के त्रास अथवा दुर्भिक्षादि किसी भी कारणसे यदि किसीके सत्कुल में कोई बट्टा लग जाता थादोष आजाता था -- तो राजा अथवा पंचों श्रादिकी सम्मति से उसकी कुलशुद्धि हो सकती थी और उसकुलके व्यक्ति तब उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार के योग्य समझे जाते थे । इस कुलशुद्धिका विधान भी आदिपुराण में पाया जाता है । यथा : * संजन्मप्रतिलभोऽयमार्यावर्त्त विशेषतः । सतां देहादिसामग्र्यां क्षेत्रः सूते हि देहिनाम् ॥८७॥ शरीरजन्मना सैपा सज्जातिरूपवर्णिता । पतन्मूला यतः सर्वाः पुंसामिष्ठार्थसिद्धयः ॥ ८ ॥ संस्कारजन्मना चान्या सज्जातिरनुकात्येते । यामासाद्य द्विजन्मत्वं भव्यात्मा समुपाश्नुते ॥ ८॥ - आदिपुराण, ३८याँ पर्व । + अयोनिसंभवं दिव्यज्ञानगर्भसमुद्भवं । सोऽधिगत्य परं जन्म तदा सज्जातिभाग्भवेत् ॥१८॥ - श्रादिपुराण पर्व ३८वां । الله

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