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विवाह-क्षेत्र प्रकाश। लाया है कि आर्य पुत्र 'बड़े भाईके पुत्र' और 'राजी' के लिये भी एक गौरवान्वित विशेषणके तौरपर प्रयुक्त होता है। यथाः-- आर्यपुत्रः--honorrific desiy lution of the son of the eld nother' : or of a prince by his general &c. __ ऐसी हालतमै एक मान्य और प्रतिष्टत जन तथा राजा समझ कर भी उक्त सम्बोधन पदका प्रयोग हो सकता है और उससे यह लाजिमी नहीं पाता कि उनका विवाह होकर पतिपत्नी संबंध स्थापित होगया था। इसी तरह पर 'प्रिया' और 'वल्लभा शब्दोंके लिये भी, जो दोनों एक ही अर्थको वाचक है, ऐसा नियम नहीं है कि वे अपनी विवाहिता स्त्रीके लिये ही प्रयुक्त होत हो-वे साधारण स्त्री मात्रके लिये भी व्यवहृत होते हैं, जो अपनको प्यारी हो । इसीसे उक्त ऐप्टे साहबने 'प्रिया' का अर्थ a loan in gutiyal और वल्लभाका । }yeloved female भी दिया है। कामी जन तो अपनी कामु. कियों अथवा प्रेमिकाओं को इन्हीं शब्दोंमें क्या इनसे भी अधिक प्रेम व्यंजक शब्दों में सम्बोधन करते हैं। ऐसी हालतमें ऋषिदत्ताके प्रेमपाश में बँधे हुए उस कामांध शीलायधने यदि उसे 'प्रिय' अथवा 'वल्लभ' कह कर सम्बोधन किया तो इसमें कौन श्राश्चर्य की बात है ? इन मम्बांधन पदोस ही क्या दोनोका विवाह मिद्ध होता है? कभी नहीं । केवल भोग करने से भी गंधर्व विवाह सिद्ध नहीं होजाता, जब तक कि उससे पहले दोनोम पति पत्नी बननेका दृढ़ संकल्प और ठहराव न होगया हो। अन्यथा, कितनी ही कन्याएँ कुमारावस्थामें भांग कर लेती हैं और वे फिर दसरे परुषोसे व्याहो जाती हैं । इस लिये गंधर्व विवाहके लिये भोगसे पहले उक्त संकल्प तथा ठहराव का होना जरूरी और लाजिमी है। समालोचक जी कहते भी हैं कि उनदानाने ऐसा निश्चय करके ही भाग किया था,परन्तु