________________
म्लेच्छोसे विवाह । " उन मलेशीमें हिंसा मांसभक्षण आदि की प्रवृत्ति सर्वथा नहीं थी।" ___ "बहुनसे लोग जो म्लेच्छोंको नोच और कदाचरणी समझ रहे हैं उनकी यह समझ बिलकु न मिया है।"
"इन मलेक्ष गजाओ का नीच हिसक मांसखोर प्रादि कहना था मिथ्या और शास्त्र विरुद्ध है।"
प.ढक जन, देखा ! समालोचकजीने म्लेच्छखण्डके म्लेच्छों को किस टाइपक म्लेच्छ समझा है । कैसा विचित्र सृष्टि का अनुसंधान किया है ! श्रापको तो शायद स्वप्न में भी उसका कभी खयाल न पाया हो। अच्छा होता यदि समालोचकजी उन म्लेच्छोका एक सर्वांगपूर्ण लक्षण भी दे देते । समझमें नहीं श्राता जब लाग दिसा नहीं करते, माँस नहीं खाते, शराब नहीं पीत, जबरदस्ती दूसरोका धन नहीं हरते, अन्याय नहीं करते; ये सब बात उनमें कभी थी नहीं, वे इनकी प्रवत्तिसे सर्वथा रहित है और साथही नीव लथा कदाचरणी भी न ही है, तो फिर उन्हें 'म्लेच्छ क्यों कहा गया। उनकी पवित्र भूमिको 'म्लेच्छखण्ड'की सज्ञा क्यों दीगई? क्या उनसे किसी प्राचार्य का कोई अपराध बनगयाथा या वैसेही किसो श्राचार्यका सिर फिर गया था जो एस हिंसादि पापांस सस्पृष्ट पूज्य मनुप्योको भा 'म्लेच्छ' लिख दिया ? उनसे अधिक श्रायकि ओर क्या कोई सींग होते हैं, जिससे मनुष्य जातिके आर्य और म्लेच्छ दा खास विभाग किय गये है ? महाराज ! आपकी यह सब कल्पना किसीभी समझदारको मान्य नहीं हो सकती। म्लेच्छ प्रायः मलिन और दूषित आचार वाले मनुष्यों का ही नाम है, जिन लोगों में कुल-परम्परासे ऐसे कदाचार रूढ होजातेहै उन्हीं की म्लेच्छ संज्ञा पड़ जाती है। श्रीविद्यानंदाचार्य. कर्मभूमिज म्लेच्छोंका वर्णन करते हुए, जिनमें प्रार्यखंडोद्भव और म्लेच्छ