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म्लेछोसे विवाह ।
१०६ पतला रहेहैं कि उसमें हिंसायां रतिः' (हिंसा रति ) आदि रूपसे जिस प्राचारका कथन है वह निश्चयसे म्लेच्छाचार हैम्लेच्छोंका सर्व सामान्याचार है। 'इतिस्मृतम्' शब्दोंका अर्थ होता है ऐसा कहा गया, प्रतिपादन किया गया अथवा स्मृति · शास्त्र द्वारा विधान किया गया। हाँ, अगले पद्यका अर्थ इस पद्य पर अवलम्बित जरूर है, और वह अगला पद्य जिसे समालोचक जी ने भी उद्धृत किया है इस प्रकार है :
सोऽस्त्यमीषां च यद्वेदशासार्थमधमद्विजाः। तादृशं बहुमन्यन्ते जातिवादावलेपतः ॥ ४२-१८५ इस पद्यमें बतलाया गया है कि 'घह ( पूर्व पद्यमें कहा हुश्री ) म्लेच्छाचार इन ( अक्षर ग्लेच्छों) में भी पाया जाताहै. क्योंकि ये अधमद्विज अपनी जातिके घमंडमें श्राकर वेदशास्त्रों के अर्थको उस रूपमें बहुत मानते हैं जो उक्त म्लेच्छाचारका प्रतिपादक है। और इस तरह पर जो लोग वेदार्थ का सहारा लेकर यज्ञो तथा देवताओं की बलि के नामसं बेचारे मूक पशुओं की घोर हिंसा करते तथा मांस खाते हैं उनके उस पाचारको म्लेच्छाचारकी उपमा दी गई है और उन्हें कथंचित् *अक्षर म्लेच्छ ठहराया गया है। इससे अधिक इस कथनका ग्रन्थमें कोई दूसरा प्रयोजन नहीं है। इस पद्यके “ सोऽस्त्यभीषांच" शब्द साफ बनला रहे हैं कि इससे पहिले लेच्छोंके सर्वसाधारण श्राचारका उल्लेख किया गया है और उसी ग्लेछाचार से इन अधर्म द्विजोके प्राचार की तुलना की गई है न कि इन्हीं का उक्त पद्यमे प्राचार बतलाया गया है। इसी प्रकरण के एक
___ *ऐसे लोगोको, किसी भी रूपमें उनकी जातिको सचित किये बिना, केवल ग्लेच्छ नामसे उल्लेखित नहीं किया जाता।