________________
विवाह क्षेत्र प्रकाश।
समालोचनामें ढोल पीटा है ? महाराज! सत्य इस प्रकार छिपाये से नहीं छिप सकता, उस पर पर्दा डालना व्यर्थ है, श्राप जैन धर्म की चिन्ता छोड़िये और अपने दृश्य का सुधार कीजिये। जैन धर्म किमी राति-रिवाज के प्राधित नहीं हैवह अपने अटलसिद्धान्तों और अनेकान्तात्मक स्वरूपको लिये हुए वस्तुतत्व पर स्थित है-उसे कृपया अपने रीति-रिवाजोंकी दलदलमें मत घसीटिये, उसपर से अपनी कत्सित प्रवत्तियों और संकीर्ण विचारोंका आवरण हटाकर लोगों को उसके नग्मस्वरूपका दर्शन होने दीजिये, फिर किसीकी ताब नहीं कि कोई उसे घृणाकी दृष्टि से अवलोकन कर सके।
और इस देवकी-वसुदेवके सम्बंध पन ही आप इतने क्यों उद्विग्न होते है? यह चचा भतीजीका सम्बंध तो कई पीढ़ियोको लिये हुए है-देवकी वसुदेवकी सगी भतीजो नहीं थी, सगी भतीजी तब होती जब समुद्र विजयादि घसदेघ के सगे भाइयों में से वह किसीकी लड़को होती-परन्तु आप इससे भी करीबी सम्बन्धको लीजिये, और यह राजा अग्रसेनके पोते पोतियों का सम्बंध है। कहा जाता है कि अग्रवाल वंशकी, जिन राजा अग्रसेनसे उत्पत्ति हुई है उनके १८ पत्रथे । इन पत्रों का विवाह नो राजा अग्रसेन ने दूसरे राजाओकी राजकन्याओं से कर दिया था परन्तु राजा अगमनकी युद्ध में मत्य होने के साथ उनका राज्य नष्ट होजाने के कारगा जब इन गज्यभ्रष्ट १८ भाइयों को अपनी अपनी संततिके लिये योग्र विवाहसंबंध का संकट उपस्थित हुवा नो इन्होंने अपने पिता पूज्य गुरू पतंजलि और मंत्रीपुर्नाके परामर्शसे अपने में १८ (एक प्रकारसे १७॥) गोत्रोंकी कल्पना करके आपसमें विवाहसंबध करना स्थिर किया--अर्थात्, यह ठहराव किया कि अपना गोत्र बचा कर दूसरे भाई की संततिसे विवाह करलिया आय.-औरतदन