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कुटुम्बमें विवाह |
गई थी ( कंसमातुलजेन श्रानीता तां = कंसमातुलजानीतां ), यह उसका अर्थ होता है । कंसका मामा जरासंध था । जरासंध के किसी पुत्रद्वारा देवकी दशार्णपुरसे मथुरा लाई गई होगी, उसी का यहाँ पर उल्लेख किया गया है। पिछले दोनों पद्यो में 'कन्यां' पदके जितने भी विशेषण पद हैं वे सब द्वितीया विभक्ति के एक वचन हैं और इस लिये + "कंसमातुलजानीतां' पदका दूसरा कोई अर्थ नहीं होता जिससे देवकी का कंसके मामाकी पुत्री ठहराया जासके ! इस नेमिपुराणको भाषा टीका पंडित भागचन्द्रजीने की है उन्होंने भी इन पद्योंकी टीका देवकीको कंसके मामाकी पुत्री अथवा दशार्णपुर के देवसेन राजाको कसका मामा नहीं बतलाया, जैसाकि उक्त टीकाके निम्न अंशसे प्रकट हैः "मृगावती देशविषै दशार्णपुर तहाँ देवसैन राजा श्रर धनदेवी रानी faast देवकीनामा पुत्री मँगाय मानों दुसरो देवांगनाही है ताहि महोत्सव कर सहित वसुदेवके अर्थ देता भया । वसुदेव ता सहित तिष्ठ ।” -- नानौता के एक जैनमंदिरकी प्रति ।
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जान पड़ता है समालोचकजीने वैसेही विना समझे उक्त पद परसे देवकीको कसके मामाकी पुत्री और देवसेनको कंस का मामा कल्पित कर लिया है और अपनी इस निःसार कल्पना के आधार पर ही आप अपने पाठकों का यह संदेह दूर करने के
+ देहलीके नये मंदिरकी दूसरी प्रति और पंचायती मंदिर की प्रतिमें भी मध्यका श्लोक जरूर है परन्तु उनमें इस पद की जगह "कंसमातुल श्रानौता [तां]" ऐसा पाठ है, जिसका अर्थ होता 'कंसके मामा द्वारा लाई हुई' | परन्तु वह मामा द्वारा लाई गई हो या मामा के पुत्र द्वारा, किन्तु मामाकी पुत्री नहीं थी यह स्पष्ट है ।