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. म्लेच्छोसे विवाह ।
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के म्लेच्छराजा 'सिल्यूकस' की कन्यासे विवाह किया था। ये सम्राट चंद्रगुप्त भद्रवाहु श्रुतकेवलीके शिष्य थे, इन्होंने जैनमुनि दीक्षा भी धारण की थी, जिसका उल्लेख कितने ही जैन शास्त्रो तथा शिलालेखों में पाया जाता है। और जैनियोंकी क्षेत्रगणना के अनसार सीरिया भी श्रायवाडका ही एक प्रदेश है। ऐसी हालत में यह बात और मी निर्विवाद तशा निःसन्देह हो जाती है कि पहले श्रार्यखण्ड के ग्लेच्छों के साथ भी प्रायों अथवा उच्च कुलीनों का विवाह सम्बंध होता था।
हमारे समालोचकजी का चिस जग' के विषय में बहुत ही डांवाडोल मालूम होता है --वे म्वयं इस बात का कोई निश्चय नहीं कर सके कि जरा किस की पत्री थी-कभी उन का यह खयाल होता है कि जरा का पिता नच्छ या भील न हाकर नचलो अथवा भीलो पर शासन करने वाला कोई आर्य राजा होगा और उसीन अपनी कन्या वसुदेवको दी होगी; कभी वे सोचते हैं कि यह कन्या वस देवको दी तो होगी भील ने ही परन्तु वह कहीं से उसे छीन लाया होगा--उसकी वह अपनी कन्या नहीं होगी और फिर कभी उनके चित्त में यह ग्याल भी चक्कर लगाता है कि शायद जरा हो तो म्लेच्छकन्या ही, परन्तु वह क्षेत्र नेच्छ की--नंग्छखंड के म्नेछ कीकन्या होगी, उसका कुलाचार बुरा नहीं होगा अथवा उसके श्रीचरण में कोई नीचता नहीं होगी! खेद है कि ऐसे अनिश्चित और संदिग्ध चित्तवृत्ति वाले व्यक्ति भी सुनिश्चित बातों की समालोचना करके उन पर प्रादाप करने के लिये तय्यार हो जाते है और उन्हें मिथ्या तक कह डालने की धृष्टता कर बैठते हैं ! अस्तु; समालोचकजी, उक्त अवतरण के बाद अपने खयालों की इसी उधेड़बन में लिखते हैं:
“यदि थोड़ी देर के लिये यह मान लिया जाये कि