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विवाह-क्षेत्र प्रकाश। .
इसी भील कन्यासे 'चिलातीय' नामका पुत्र उतान हुाथा, जिसे 'चिलाति पत्र' भी कहते हैं। प्रतिज्ञानुसार इसीको राज्य दिया गया और इसने श्रन्तको जिन दीक्षा भी धारण की थी।
इस लिये समालोचकजी का यह कोग भ्रम है कि सभी भील कन्या काली, बदसूरत तथा उरावनी होती हैं अथवा उनके साथ उच्चकुलोनोंका विवाह नहीं होता था। परन्तु जरा भील कन्या थी, यह बात जिनसेनाचार्यके उक्त वाक्योंकी लेकर निश्चित रूपसे नहीं कही जोसकती। उन परसे जगके सिर्फ म्लेच्छ कन्या होने का ही पता चलता है. म्लेच्छोंकी किसी जाति विशेषका नहीं। होसकता है कि पं० गजाधर. लाल के कथनानसार वह भील कन्या ही हो परन्तु पं० दौलतरामके कथनानमार वह म्लेन्छखंडके किसी ग्लेच्छराजा की कन्या मालूम नहीं होनी: क्योंकि जिनसेनाचार्यने साफ तौरसे वप्तदेवके चंपापरीसे उठाये जाने और भागीरथी गंगा नदीमें पटके जानेका उल्लेख किया है और यह वही गंगा नदी है जो यक्तप्रांत और बंगाल में को बहती है-वह महागगा नहीं है जो जैनशास्त्रानसार आर्यखण्डका म्लेच्छखण्डसे अथवा, उत्तरभारतमें, म्लेच्छखण्डका म्लेच्छखंडसे विभाग करती हैइसका भागीरथी नाम ही इसे उस महागंगासे पृथक करताहै, वह 'अकृत्रिम' और यह 'भागीरथ द्वारा लाई हुई है भगीरथेन सानीता तन भागीरथी स्मता)। चंपा नगरी भी इसके पास है। श्रतः 'जरा' इसी भागीरथी गंगाके किनारे के किसी स्नेन्छ राजाकी पुत्री थी और इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि पहले नेच्छखण्डौके नेच्छोकी कन्यानोसे ही नहीं किंतु यहांके आर्यखएडोद्भव म्लेच्छोंकी कन्याओंसे भी विवाह होताथा। उपश्रेणिक का भील कन्यासे विवाह भी उसे पुष्ट करता है । इसके सिवाय यह बात इतिहास प्रसिद्ध है कि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्यने सीरिया