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विवाह- क्षेत्र प्रकाश |
जीत कर उन पर अपना श्राधिपत्य रखने वाले चक्रवर्ती राजा से नहीं । जान पड़ता है 'म्लेच्छराज' शब्द परसे ही उन्होंने उसे म्लेच्छ्रखण्ड का राजा समझ लिया है। और पं० गजाधर लाल जी ने जो उसे " भीलोका राजा लिखा है उसका
श्राशय भील जाति के राजा ( भिल्लराज ) से सदर से है जो म्लेच्छों की एक जाति है – भीलों पर शासन करने वाले किसी आर्य राजासे नहीं । जरासे उत्पन्न हुए जरत्कुमारका श्राचरण एक बार भील जैसा होगया था, इसी परसे शायद उन्होंने जराको भील कन्या माना है। आप 'पद्मावतीपुरवाल' ( वर्ष २ अंक ५वाँ ) में प्रकाशित अपने उसी विचार लेख में लिखते भी हैं
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"वास्तव मे उस समय भी संतान पर मातृपक्षका संस्कार पहुँचता था । श्रापने हरिवंशपुराण में पढा होगा कि जिस समय कृष्ण की मृत्यु की बात मुनिराज के मुख से सुन जरत्कुमार बनमें रहने लगा था उस समय उसके श्राचार विचार भील सरीखे होगयेथे, वह शिकारी होगया था । पीछे युधिष्टिर आदि के समझानेसे उसने भालके वेषका परित्याग किया था । "
इससे स्पष्ट है कि पं गजधिरलालजी ने जराके पिताको श्रार्य जातिका राजा नहीं समझा बल्कि 'भील' समझा है और
यथा : नदीको पार कर कुमार किसी वनमें पहुँचे वहाँ पर घूमते हुए उन्हें किसी भीलोंके राजाने देखा उनके सौंदर्य पर मुग्ध हो वह बड़े आदरसे उन्हें अपने घर लेगया और उसने अपनी जरा नाम की कन्या प्रदान की ।"
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+ यथा: - भिल्लः, म्लेच्छ जातिविशेषः । भील इति भाषा | यथा हेमचंद्रे - माला मिलाः किराताश्च सर्वाऽपि म्लेच्छ जातयः । - इति शब्दकल्पद्र ुमः।
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