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कुटुम्बमें विवाह |
और यशः कीर्तिने भी अपने प्राकृत हरिवंपुराणको जिनसेन के आधार पर लिखा है । वे उसके शब्द अर्थका सम्बंध जिनसेन शास्त्र (हरिवंशपुराण ) से बतलाते हैं । यथा:श्रइ महंत पिक्खिवि जणु संकिउ । ता हरिवंसु मईमिर्डहिंकिउ । सद्द अत्यसंबंधु फुरंत । जिरण से हो सतहो यहु पयडिउ ।।
इन उल्लेखांस स्पष्ट है कि उक्त नेमिपुराणादि चारों ग्रंथ जिनसेन के हरिवंशपुराण और गुणभद्र के उत्तरपुराणके आधार पर लिखे गये हैं और इसलिये इनसे यदि किसीमें देवकीको कसकी या कंसके भाई श्रतिमुत्तककी बहन ( स्वसा ), छोटी बहन (अनुजा ) श्रथवा राजा उग्रसेन के भाई की पुत्री ( भ्रातृशरीरजा, इत्यादि ) नहीं लिखा हां तो इतने परसे ही वह किसी दूसरे देवसेनकी पुत्री नहीं ठहराई जा सकती, जबतक कि कोई स्पष्ट कथन ग्रंथ में इसके विरुद्ध न पाया जाताही । और यदि इन ग्रंथो मेंसे किसीमें ऐसा कोई विरोधी कथन हो भी तो वह उस ग्रन्थकारका अपना तथा अर्वाचीन कथन समझना चाहिये, उसे जिनसेनके हरिवशपुराण और गुणभद्र के उत्तरपुराणपर कोई महत्व नहीं दिया जासकता । परन्तु इन ग्रन्थों में ऐसा कोई भी विरोधी कथन मालूम नहीं पड़ता जिससे देवकी राजा उग्रसेनके भाई देवसेन से भिन्न किसी दूसरे देवसेनकी पुत्री ठहराई जा सके । फिरभी समालोचकजी नेमिपुराण में
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*जिनदास ब्रह्मचारी के हरिवशपुर में तो उन तीनों श्रवसरोपर देवकीको कल तथा अतिमुक्तककां बहन ही लिखा है जिनपर जिनसेन के हरिवंशपुराण में वैसा लिखा गया है । यथा:"श्रानीय मधुगं भक्त्याऽस्यर्याय प्रददौ निजां । स्वसार देवकीं तस्मै सन्मान्य मृदुभाषया ॥ ६८ ॥ सविभ्रमा हसतीति प्राह जावद्यशा स्वसुः। देवक्या वीक्ष त्वं वस्त्र