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कुटुम्ब विवाह । महोग्रो भग्नसंचारं उग्रसेनं निगृह्य सः। अतिष्ठिपकनिष्ठः सः स्वपुरद्वारगोचरे ।। २७ ॥
-हरिवंशपुराण, २३वाँ सर्ग । इसके बाद कंस ने सोचा कि यह सब ( जीवधशा से विवाह का होना और मथुरा का राज्य पाना ) घमुदेवका उपकार है, मुझे भी उन के साथ कुछ प्रत्युपकार करना चाहिये और इसलिये उसने प्रार्थना-पूर्वक अपने गरु वसुदेव को बड़ी भक्ति के साथ मथुरा में लाकर उन्हें गरुदक्षिणा के तौर पर अपनी बहन देवकी' प्रदान की--अर्थात्, अपनी बहन देवकी का उनके साथ विवाह कर दिया।
विवाह के पश्चात् धसुदेवजी कंस के अनुरोध से देवकी सहित मथुरा में रहने लगे। एक दिन कंस के बड़े भाई 'अतिमुक्तक ' मुनि #आहार के लिये कंस के घर पर प्राण । उस समय कस की रानी जीवद्यशा उन्हें प्रणाम कर बड़े विभ्रम के साथ उनके सामने खड़ी हो गई और उसने देवकी
* ये 'अतिमुक्तक' मुनि राजा उग्रसेनके बड़े पुत्र थे और पिता के साथ किये हुए कंस के व्यवहार को देखकर संसार से विरक्त हो गये थे, ऐसा जिनदास ब्रह्मचारीके हरिवंशपुराण से मालूम होता है, जिसका एक पद्य इस प्रकार है:
उग्रसेनात्मनो ज्येष्टोऽतिमुक्तक इतीरितः। भवसिथतिमिमां वीक्ष्य दध्याविति निज हृदि ॥१२-६१॥
परन्तु ब्रह्मनेमिदत्त अपने कथाकांशमैं इन्हें कंसका भी छोटा भाई लिखत है। यथा
" तदा कंसलघुभ्राता दृष्ना संसारचेष्टितं । . अतिमुक्तकनामासौ संजातो मुनिसत्तमः ।।