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विवाह-क्षेत्र प्रकाश । सोऽप्यविज्ञायवृत्तान्तो दत्तवान्वरमस्तधीः । नापायः शंक्यते कश्चित्सोदरस्य गृहे स्वसुः॥४०॥" टीका-" (मुनिने कहा ) या देवकी के गर्भ विर्षे एंसापुत्र होयगा जो तेरे पति. श्रर पिता मारेगा ॥ ३६ ॥ तब यह जीवजशा अश्रुपात करि भर है नेत्र जाके सो जायकरि अपने पतित मुनिक कहे हुए बचन कहती भई ॥ ३७॥ तब कंस ए वचन सुनकरि शंकावान होय तत्काल वसदेव पै गया पर वर मांग्या ॥३८॥ कही हे स्वामी माहि यह वर देहु जो देवकीकी प्रसूति मेरे घर होय । सो वसदेव तो यह वृसान्त जाने नाहीं॥३६॥ विना जाने कही तिहारेहो घर प्रतिके समै वह निवास करहु । यामें दोष कहा । बहन का जापा भाई के घर होय यहतो उचित ही है । या भाँति वचन दिया ॥ ४० ॥"
इन पद्यों से २६, ३३वे और ४०वें पद्यमें यह स्पष्टरूपसे घोषित किया गया है कि देवकी कंसकी बहन थी, कंसके बड़े भाई अतिमुक्तककी बहन थी और कंस उसका 'सादर' था। 'सोदर शब्दको यहाँ प्राचार्य महाराजने खासतौर पर अपनी श्रोरसे प्रयुक्त किया है और उसके द्वारा देवकी और कंसमें बहन भाई के अत्यंत निकट सम्बंधको घोषित कियाहै। 'सोदर' कहत है 'सहादर' को-सगं भाई को-,जिनका उदर तथा गर्भाशय समान है-एक हे-अथवा जो एकही माताके पेटसे उत्पन्न हुरहै वे सब सादर कहलाते हैं । और इस लिये सोदर, समानादर, सहोदर, सगर्भ, सनाभि, और सोदर्य ये सब एकार्थवाचक शब्द है । ' शब्द कल्पद्रुम' में भी सोदर का यही अर्थ दिया है । यथाः--
"सादरः, (सह समान उदर यस्य । सहस्य सः।)सहोदरः इति शब्द रत्नावली।" "सहोदरः, एकमातगर्भ