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कुटुम्बमें विवाह |
६५.
'सूर' और 'सुवीर' नामके दो पुत्र हुए, जिन्हें राज्य पर स्थापित करके उसने तप लेलिया ; इसके बाद सूरने अपने भाई सुधीर को मथुरा में स्थापित करके स्वयं सौर्यपुर नगर बसाया ; सूर से 'अन्धकवृष्टि' आदि शूर पुत्र उत्पन्न हुए और मथुरा स्वामी सुवीर से 'भोजऋघृष्टि आदि वीर पुत्रों की उत्पत्ति हुई; सूर और सुबीर दोनों ने अपने अपने ज्येष्ठ पुत्र (यंत्रकवृष्टि, भोजकवृष्ठि ) को राज्य देकर सुप्रतिष्ठ मुनि दीक्षा ली श्रार सिद्धपदको प्राप्त किया: अन्धकवृष्टिकी सुभद्रा स्त्री से समुद्र विजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान, विजय, अचल, धारण, पुरण, अभिचन्द्र, और वसुदेव नामके दस महाभाग्यशाली पुत्र उत्पन्न हुए, साथही कुन्ती और मट्टी नामकी दो कन्याएँ भी हुई और राजा भोजक वृष्टिकी पद्मावती स्त्री से उग्रसेन, महासेन और देवसेन नामके तीन पुत्र x उत्पन्न हुए । ' यही वह सब वंशावली है जिसका सार लेखकने वसुदेवजी
x समालोचकजीने, तीन पुत्रों के अतिरिक्त एक पुत्रीके भी नामोल्लेख का पृष्ट ३ पर उल्लेख किया है । परन्तु देहलीके नये मंदिरकी प्रतिमें, यहाँपर, पुत्री का कोई उल्लेख नही पाया जाता । हाँ, उत्तरपुराण में 'गांधारी' नामकी पुत्रीका उल्लेख जरूर मिलता है । परन्तु वहाँ वसुदेवके पिता और उग्रसेनके पिता दोनों को सगे भाई बतलाया है । और दोनोंके पिताका नाम शूरवीर तथा पितामहका सूरसेन दिया है । यथा :श्रवार्य निजशौर्येण निर्जिताशेषविद्विषः । ख्यातशौर्यपुराधीशसृग्मेनमहीपतेः ॥ ६३ ॥ सुतस्य शूरवीरस्य धरिण्याश्च तद्भवौ । विख्याताऽन्धकवृष्टिश्च पतिवृष्टिनरादिवाक ॥६४॥
-- ७०वाँ पर्व |