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विवाह क्षेत्र प्रकाश ।
जिनसेनका हरिवंशपुराण मौजूद था - उन्होंने उसके कितने ही वाक्य समालोचनामें दूसरे श्रवसरोंपर उद्धृत किये हैं-बे स्वयं इस बातको जानते थे कि पं० गजाघरलालजीने जो बात अनुवाद में कही है वह मूलमें नहीं है – यदि मूल में होती तो वे सबसे पहले कूदकर उस मूलको उद्धृत करते और तब कहीं पीछे से अनुवाद का नाम लेते - फिरभी उन्होंने गजाधरलालजी के मिथ्या अनुवादको प्रमाण में पेश किया. यह बड़ेही दुःसाइसकी बात है । उन्हें इस बातका जराभी खयाल नहीं हुआ कि जिस धोखादेहीका में दूसरों पर झूठा इलजाम लगा रहा हूँ उसका अपनी इस कृतिसं स्वयंही सचमुत्र अपराधी बना जारहा हूं और इसलिये मुझे अपने पाठकों के सामने 'उसी * हरिवंशपुराण' या '+ जिनसेन' के नामपर ऐसी मिथ्या बासको रखते हुए शर्म श्रानी चाहिये । परन्तु जान पड़ता है समालोचकजी सत्य अथवा असलियत पर पर्दा डालने की धुन में इतने मस्त थे कि उन्होंने शर्म और सद्विचारको उठाकर एकदम बोलाए ताक रख दिया था, और इसीसे वे ऐसा दुःसाहस कर सके हैं।
हम समालोचकजीसे पूछते हैं कि आपने तो पं० गजाधरलालजी भाषा किये हुये हरिवंशपुराणके सभी पत्रों को खूब उलट पलट कर देखा है तब आपको उसके ३६५६ पृष्ठ पर ये पंक्तियाँ भी जरूर देखनेको मिली होगी जिनमें नवजान बालक कृष्ण को मथुरासे बाहर लेजाते समय वसुदेवजी और कंसके बंदी पिता राजा उग्रसेन में हुई वार्तालापका उल्लेख है:
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" पूज्य ! इस रहस्यका किसीको भी पता न लगे इस देवकी के पुत्र से नियमसे श्राप बंधन से मुक्त होंगे उत्तर में उग्रसेनने कहा - अहा! यह मेरे भाई देवसेनकी पुत्री
* + देखो समालोचनाका पृष्ट ३ रा और ६ठा ।