________________
वेश्याओंसे विवाह । लिये उसकी याचना की। इस पर राजाके इस उतरको पाकर कि 'वह कन्या तो राजपत्रने विवाह ली है' वे लोग चलेगये।
इस उल्लेख परसे स्पष्ट है कि श्रीजिनसेनाचार्य ने पहले पद्यमें जिस बातके लिये 'स्वीकृता' पदका प्रयोग किया था उसो बातको अगले पद्य ने 'ऊहा' पदसे ज़ाहिर किया है, जिससे 'स्वीकृता' (स्वीकार कर ली) और 'ऊढा' (विवाह ली) दोनों पद एक ही अर्थक वाचक सिद्ध होते हैं । पं० दौलतगमजी ने 'स्वीकृता' का अर्थ 'अङ्गीकार करी' और 'ऊढा' का अर्थ 'परी' दिया है । और समालोचकजीके श्रद्धास्पद पं० गजाधरलालजी ने, उक्तपद्योंका अर्थ देतेहुए,'म्बीकृता'को तरह 'ऊढा'का अर्थ भी 'स्वीकार करली' किया है और इस तरह पर यह घोषित कियाहै कि ऊढा (विवाहिता और 'स्वीकृता दोनो एकार्थवाचक पद हैं।
ऐसी हालतमें यह बात बिलकुल निर्विवाद और निःसन्देह जान पड़ती है कि चारुदत्तने वसन्तसेना वेश्याके साथ विवाह किया था--उसे अपनी स्त्री बनाया था और उसी बातका उल्लेख उनकी तरफसे उक्त लोकमें किया गया है। और इस लिये उक्त श्लोकमें प्रयुक्त हुए "स्वीकृतवान्" पदका स्पष्ट अर्थ "विवाहितवान्" समझना चाहिये।
खेद है कि,इतना स्पष्ट मामला होतेहुए भी, समालोचकजी, लेखकके व्यक्तित्वपर श्राक्षेप करते हुए, लिखतहे-- "चारुदत्तने वसन्तसैनाको घरम नहीं डाल लिया था और न उसे स्त्री रूपसे स्वीकृत किया था, जैसाकि बाबू साहबने लिखा है । यह दाना बाते शास्त्रों में नहीं हैं न जाने बाबू साहबने कहाँसे लिखदी है बाबू साहबकी यह पुरानी आदत है कि जिस बातसे अपना मतलब निकलता देखते हैं उसी बातको अपनी ओरसे मिलाकर झट लोगोको धोखमें डाल देते हैं।"