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विवाह क्षेत्र-प्रकाश।
नीचे गिर गये है। उन्हें इतनी भी समझ नहीं पड़ी कि लेखक अपने कथनको जिनसेनाचार्यके हरिवंशपुराणके आधार पर स्थितकर रहा है और इसलिये उसके विपक्ष में दूसरे ग्रन्थों के वाक्योंको उद्धृत करना व्यर्थ होगा, उनसे वह कथन मिथ्या नहीं ठहराया जा सकता, उसे मिथ्या ठहराने के लिये जिनसेना चायके वाक्य ही पर्याप्त होसकते हैं और यदि वैसे कोई विरोधी पाक्य उपलब्ध नहीं हैं तो या तो हमें कोई आपत्तिही न करनी चाहिये और या जिनसेनाचार्यको ही अपनी भापत्तिका विषय बनाना चाहिये।
जैन कथा ग्रंथों में सैंकड़ो बातें एक दूसरे के विरुद्ध पाई जाती है, और वह प्राचार्यों प्राचार्यों का परस्पर मतभेद है। पंडित टोडरमलजी भादि के सिवाय, पं० भागचन्दजी ने भी इस भेद भाव को लक्षित किया है और नेमिपुराण की अपनी भाषाटीका के अन्त में उसका कुछ उल्लेख भी किया है *। परन्तु यहां पर हम एक बहुत प्रसिद्ध घटना को लेते हैं, और पह यह है कि सीता को उत्तरपुराण में रावण की पुत्री और पद्मपुराणादिक में राजा जनक की पुत्री बतलाया है। अब यदि कोई पुस्तक लेखक अपनी पुस्तकमे इस बात का उल्लेख
* यथाः—" यहां इतना और जानना इस पुराण की कथा [और] हरिवंशपुराणकी कथा कोई कोई मिले नाहीं जैसे हरिवंशपुराण विषैतो भगवानकाजन्म सौरीपुर कह्या और इहां द्वारिका का जन्म कहा बहुरि हरिवंश में कृष्ण तीसरे नरक गया कह्या इहां प्रथन नरक गया कह्या और भी नाम ग्रामादिक मे फेर है सो इहां भ्रम नाहीं करना । यह छमस्थ भाचार्यन के शान में फेर पर्या है। "-नेमिपुराण भाषा नानौताके एक मंदिर की प्रति ।