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विवाह-क्षेत्र प्रकाश। सकती, क्रमशः पतन होना कुछभी अस्वाभिषक नहीं है। पापी । का सुधार वही कर सकता है जो पापीके व्यक्तित्व से घृणा नहीं करता बल्कि पापसे घणा करता है। पापीसे घृणा करने वाला पापीके पास नहीं फटकता, वह सदैव उससे दूर रहता है और उन दोनों के बीच में मीलोकी गहरी खाई पड़ जाती है; इससे वह पापीका कभी कुछ सधार या उपकार नहीं कर सकता । प्रत्युत इसके, जो पापसे घृणा करता है वह सद्य की तरह हमेशा पापी (रोगी) के निकट होता है, और बराबर उसके पापरोगको दूर करने का यत्न करता रहता है । यही दोनो में भारी अन्तर है। आजकल अधिकांश जन पापसे तो घृणा नहीं करते परन्तु पापीसे घृणा का भाव जरूर दिखलाते हैं अथवा घृणा करते हैं । इसीसे संसारमें पापको उत्तरोत्तर वृद्धि होरही है और उसकी शांति होने में नहीं पाती । बहुधा जाति बिरादरियों अथवा पंचायतों की प्रायः ऐसी नीति पाई जाती है कि वे अपने जाति भाइयों को पापकर्मसे तो नहीं रोकती और न उनके मार्गमे कोई अर्गला ही उपस्थित करती हैं बल्कि यह कहती कि 'तुम सिंगिल (पकहरा) पाप मत करो बल्कि डबल (दोहरा) पाप करो-डयल पाप करनेसे तुम्हें कोई दण्ड नहीं मिलेगा परन्तु सिंगिल पाप करने पर तुम जातिसे खारिज कर दिये जानोगे । अर्थात्, वे अपने व्यवहारसे उन्हें यह शिक्षा देरही हैं कि 'तुम चाहे जितना बड़ा पाप करो, हम तुम्हे पाप करने से नहीं रोकती परन्तु पाप करके यह कहो कि हमने नहीं किया- पापको छिपकर करो और उसे छिपाने के लिये जितना भी मायाचार तथा असत्य भाषणादि दूसरा पाप करना पड़े उसकी तुम्हें छुट्टी है--तुम खुशीसे व्यभिचार कर सकते हो परन्तु वह स्थल रूपमें किसी पर जाहिर न हो, भलेही इस कामके लिये रोटी बनानेवालीके रूपमें किसी स्त्रीको