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श्याओसे विवाह
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यह पाया जाता हो कि चारूदत्तके व्यक्तित्व के साथ उस बक्त जनताका व्यवहार तिरस्कारमय था । प्रत्युत इसके, यह मालूम होता है कि चारुदत्त का काका स्वयं घेश्याव्यसनी था, वारुदत्त की माता सुभद्राने, चारुदन्तको स्त्री - संभोग से विरक्त देखकर, इसी काकाके द्वारा वेश्याव्यसनमें लगायाथा* ; वेश्या के घर से निकाले जाने पर जब चारुदत्त अपने घर श्राया तो उसकी स्त्री ने व्यापार के लिये उसे अपने गहने दिये और बह मामा के साथ विदेश गया : विदेशों में चारुदत्त अनेक देवों तथा विद्याधरों से पूजित, प्रशंसित और सम्मानित हुआ; उसे प्रामाणिक और धार्मिक पुरुष समझ कर 'गंधर्वसेना' नामकी विद्याधर-कन्या उसके समर्थ भाइयों द्वारा विवाह करदेनेके लिये सौंपी गई और जिसे चारूदत्तने पुत्री की तरह रक्खा ; चारुदत्त के पीछे वसन्तसेना वेश्या उसकी माताके पास श्री रही और माता की सेवा सुश्रूषा करते हुए निःसंकोच भावले उसके वहां रहने पर कहीं से भी कोई आपत्ति नहीं की गई; areers विदेश से वापिस आने पर मातादिक कुटुम्बीअन और चम्पापुरी नगरीके सभी लोग प्रसन्न हुए और उन्होंने चारुदरा के साथ महती तथा अद्भुत प्रीति को धारण किया x ; चारूदत्तने उस वसंतसेना वंश्याको अंगीकार किया
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* ब्रह्मनेमिदत्त ने भी आराधनाकथाकोश में लिखा है तदा स्वपुत्रस्य मोहेन संगति गणिकादिभिः । सुभद्रा कारयामास तख्योश्चैर्लम्पटैर्जनैः ॥
x ब्रह्मनेभिदत्तके कथाकाशमें चम्पापुरीके लोगों आदि की इस प्रीतिका उल्लेख निम्न प्रकार से पाया जाता है। :― भानुः श्रेष्ठी सुभद्रा सा चारुदत्तागमं तदा । अन्ये चम्पापुरीलोकाः प्रीति प्राप्ता महाद्भुताम् ॥