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द्वि० लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण।
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में फिर से वही स्वास्थ्यप्रद जीवनदाता और समद्धिकारक पवन बह सकेगा जिसका बहना अब बंद हो रहा है और उस के कारण समाज का सांस घट रहा है।
समाज के दंड विधान और उसके परिणाम-विषयक इन्हीं सब बोतोको भाड़े से स्त्र वाक्यों द्वारा सझाने अथवा उनका संकेतमात्र करने के उद्देश्य से ही यह चारुदत्त वाला लेख लिखा गया था।
समालोचकजोको यदि इन सब बातोका कुछ भी ध्यान होता तो वे ऐसे सदुद्देश्य से लिखे हुए इस लेखके विरोध ज़राभी लेखनी न उठाते। आशा है लेखोद्देश्य के इस स्पष्टीकरणसे उनका बहुत कुछ समाधान होजायगा और उनके द्वारा सर्वसाधारणमें जो भ्रम फैलाया गया है वह दूर हो सकेगा।
वेश्याओं से विवाह । पुस्तक के प्राशय-उद्देश्यका विवेचन और स्पष्टीकरण करने आदि के बाद अब मैं उदाहरणोंकी उन बातों पर विचार करता हूँ जिन पर समालोचना में आक्षेप किया गया है. और सबसे पहले इस चारुदत वाले उदाहरणको ही लेता हूँ । यही पहले लिखा भी गया था, जैसा कि शुरू में ज़ाहिर किया जा चुका है। समालोचकजी ने जो इसे वसदेव जी वाले उदाहरण के बाद लिखा बतलाया है वह उनकी भूल है।
इस उदाहरण में सिर्फ दो बातों पर आपत्ति की गई है एकतो वसंतसेना धेश्याको अपनी स्त्री रूप से स्वीकृत करने अथवा खल्लमखल्ला घर में डाल लेने पर, और दूसरी इस बात पर कि चारुदत्त के साथ कोई घणा का व्यवहार नहीं किया गया। इनमें से दूसरी बात पर जो आपत्ति की