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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश।
दरीके आधुनिक दण्डविधानोको लक्ष्य करके लिखा गया है।
जाति-पंचायतों का दएड-विधान । आजकल, हमारे बहुधा जैनी भाई अपने अनदार विचारों के कारण जरा जरा सी बात पर अपने जाति भाइयोको जातिसे च्युत अथवा बिरादरीसे खारिज करके-उनके धार्मिक अधिकारों में भी हस्तक्षेप करके उन्हें सन्मार्गसे पीछे हटा रहे हैं और इस तरह पर अपनी जातीय तथा संघशक्तिको निर्बल और निःसत्व बनाकर अपने ऊपर अनेक प्रकारकी विपत्तियों को बलाने के लिये कमर कसे हुए हैं। ऐसे लोगोंको चारुदत्त के इस उदाहरण-द्वारा यह चेतावनो की गई है कि वे दण्डविधानके ऐसे अवसरों पर बहुतही सोच-समझ और गहरे विचार तथा दूरदृष्टिसे काम लिया करें। यदि वे पतितोंका स्वयं उद्धार नहीं कर सकते तो उन्हें कमसे कम पतितोके उद्धारमें बाधक न बनना चाहिये और न ऐसा अवसर ही देना चाहिये जिससे पतितजन और भी अधिकताके साथ पतित होजायें। किसी पतित भाई के उद्धारकी चिन्ता न करके उसे जातिसे खारिज कर देना और उसके धार्मिक अधिकारीको भी छीन लेना ऐसा ही कर्म है जिससे वह पतित भाई, अपने सुधार का अवसर न पाकर, और भी ज्यादा पतित होजाय, अथवा यो कहिये कि वह डूबते को ठोकर मारकर शीघ्र डबा देने के समान है। तिरस्कार से प्रायः कभी किसी का सुधार नहीं होता, उससे तिरस्कृत व्यक्ति अपने पापकार्यमें और भी दृढ़ हो जाता है और तिरस्कारी के प्रति उसकी ऐसी शता बढ़जाती है जो जन्म जन्मान्तरोंमें अनेक दुःखो तथा कष्टोका कारण होती हुई दोनोंके उन्नति पथमें बाधा उपस्थित करदेती है। हाँ, सुधार होता है प्रेम, उपकार और सद्व्यवहार से।