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विवाह-क्षेत्र प्रकाश ।
घरमें डालने की प्रवृत्ति चलाना चाहा गया है। वेश्यागमनकी खूब ही शिक्षा और उपदेश देना तो दूर रहा,लेखमें एकभी शब्द एसा नहीं है जिसके द्वारा वेश्यागमनका अनुमोदन या अभिनंदन किया गया हो अथवा उसे शुभकर्म बतलाया हो । प्रत्युत इसके, चारुदत्त और उस वेश्याका “दोव्यसनासक्त व्यक्ति" तथा "पतित जन" सूचित किया है, वेश्याको 'नीच स्त्री" और उसकी पूर्व परिणति का (१२ नतोके ग्रहणसे पहले वेश्या जीवनको अवस्थाका ) "नीच परिणति" बतलाया है और एक वेश्या जैसी नीच स्त्रीको खल्लम खलजा घरमें डाल लेनेके कर्म का "अपराध" शब्दसे अभिहित किया है । साथही, उदाहरणांश और शिक्षांश में दिये हुए दो वाक्यों द्वारा यह स्पष्ट घोषित किया गया है कि उक्त दाना व्यसनासक्त व्यक्ति अपने उद्धार से पहले पतित दशामें थे, बिगड़े हुए थे और उनका जीवन अधार्मिक था; एक कुटुम्ब तथा जाति बिरादरीके सद्व्यवहार के कारण उन्हें अपने उद्धार' तथा 'सुधार' का अवसर मिला और उनका जीवन अन्तको धार्मिक' बन गया। ___ इतन परभी समालोचकजी उक्त लेखम वेश्यागमनके महापदेशका स्वप्न देख रहे हे ओर एक ऐसे व्यक्ति पर वश्यागमन का उपदेश देकर अपना हवस पूरी करने का मिथ्या आरोप (इलजाम लगा रहे हैं जो २५ बर्ष से भी पहले से वश्याओंक नृत्य देखने तकका त्यागी है-उसके लिये प्रतिक्षा बद्ध है-और एसे विवाहों में शामिल नहीं हाता जिनमें वेश्याएं नचाई जाती हो। समलोचकजीकी इस बुद्धि, परिणति, सत्यवादिता और समालोचकीय कर्तव्य पालनकी निःसन्देह बलिहारी है !! जान पड़ता है श्राप एकदम ही ग्रहपीडित अथवा उन्मत्त हो उठे है और धापने अकाण्ड ताण्डव श्रारम्भ कर दिया है। रही वेश्याको घरमें डालने की प्रवृत्ति चलाने की बात,