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उद्देश्य का अपलाप आदि ।
की जो बात कही गई है वह ऐसीही घृणोत्पादक दृष्टि अथवा अनधिकार चेष्टा का फल है । भूमिका में एक वाक्य " बाबू जुगलकिशोरजी के लिखे अनुसार " इन शब्दों के अनन्तर निम्नं प्रकार से डबल कामाज के भीतर दिया है और इस तरह पर उसे लेखकका वाक्य प्रकट किया है-
"गृहस्थ के लिये स्त्री की जरूरत होनेके कारण चाहे जिसकी कन्या ले लेनी चाहिये”
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परन्तु समालोच्य पुस्तक में यह वाक्य कहीं पर भी नहीं है, और न लेखककी किसी दूसरी पुस्तक अथवा लेखमें ही पाया जाता है; और इसलिये इसे समालोचकजीकी सत्यवादिता और कूटलेखकता को एक दूसरा नमूना समझना चाहिये ! जान पड़ता है आप ऐसे ही सत्यके अनुयायी अथवा भक्त हैं ! और इसीलिये दूसरों का नग्न सत्य भी आपको सर्वथा मिथ्या और सफेद झूठ नज़र आता है !!
यह तो हुई पहले लखके शिक्षांश की बात, अब दूसरे लेखके शिक्षांको लीजिये ।
द्वितीय लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण |
समालोचकजी ने पहले लेख के उदाहरणांशों को जिस प्रकार अपनी समालोचनामें उद्धृत किया है उस प्रकारसे दूसरे लेख के उदाहरणांशको उद्धृत नहीं किया और इसलिये यहाँ पर इस दूसरे छोटेसे लेखको पूरा उद्धृत कर देना ही ज्यादा उचित मालूम होता है, और वह इस प्रकार है :
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"हरिवंशपुराणादि जैनकथाग्रंथों में चारुदत्त सेठकी एक