Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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| एक शहर है, यह वात स्वीकार करते हैं किन्तु अनेक मार्गोंको देखकर पटना शहरको जानेवाले मार्गमें
उनका झगडा है। कोई किसी मार्गको वतलाता है, किसीको कोई मार्ग ठीक जान पडता है उसी प्रकार | सांख्य वेदांती आदि जितने भी वादी हैं, सभी मोक्ष पदार्थको मानते हैं। मोक्ष पदार्थके माननेमें किसी का भी झगडा नहीं किन्तु मोक्षका जो उपाय है उसमें उनका विवाद है। कोई कोई वादी कहते हैं कि सम्यग्दर्शन और चारित्रकी कोई अपेक्षा न रखकर अकेले ज्ञानसे ही मोक्ष प्राप्त हो जाती है इनके मतमें सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र निरर्थक हैं । वहुतसे वादियोंका सिद्धान्त है कि ज्ञान और वैराग्य ही। | मोक्षमें कारण हैं इन्हीं दो कारणोंसे मोक्ष प्राप्त हो जाती है उसकी प्राप्तिमें अन्य किसी भी कारणकी | आवश्यकता नहीं ! यहाँपर ज्ञानका अर्थ-पदार्थों का जानना है, और विषयजन्य सुखोंकी लालसा | छूट जाना वैराग्य माना है । तथा अन्य वादी यह मानते हैं कि क्रिया-यज्ञ आदि क्रियासे ही मोक्ष |
मिल जाती है सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञानकी कोई आवश्यकता नहीं । उनके आगममें यह लिखा भी हुआ|६|| द् है कि "नित्यकर्महेतुकं निर्वाणमिति" नित्य कर्मके करनेसे मोक्ष प्राप्त हो जाती है। विशेष--
मीमांसक सिद्धांतमें कर्मके दो भेद माने हैं एक गुणकर्म दूसरा अर्थ कर्म । उत्पचि, आति, विकृति | और संस्कृति ये चार भेद गुणकर्मके हैं । नित्यकर्म र नैमिचिककर्म २ और काम्यकर्म ३ये तीन भेद अर्थ । कर्मके हैं । यावज्जीव अग्निहोत्र नामका यज्ञ करना वा सायंकालको करना अथवा प्रातः काल करना । | इसप्रकार नित्य यज्ञ करना नित्यकर्म है । दर्शपूर्णमासादि नैमिचिक-(किसी निमिचसे होनेवाले) यज्ञोंका करना नैमिचिक कर्म है । इसलोक परलोकके किसी खास फलकी इच्छासे दर्शपूर्णमासादिक यज्ञ करना
१ विज्ञानाद्वैतवादी वेदांती । २ चौद्धभेद । ३ मीमांसक। ४ । भीमांसापरिभाषा पृष्ठ १६ ।
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