Book Title: Sutak Sambandhi Shastriya Saral Samaj
Author(s): Vijayjaidarshansuri
Publisher: Jinagna Prakashan

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Page 14
________________ સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ 19 पारिजातमें यमकामीने कथन लिखा है कि, शिव और विष्णुकी पूजा, दीक्षा और अग्निका ग्रहण जिसको है उसे वेदोक्त कर्म करना चाहिये, और स्नान से पवित्र होता है / गौडशुद्धितत्त्वमें मंत्रमुक्तावलीका वाक्य है कि, दीक्षावाले मनुष्योंको जप और देवपूजनकी विधि करनी चाहिये कारण कि, वशीभूत मनवाले पुरुषको पाप और सूतक नहीं लगता।" (पृ. 831-832) "दर्श च पूर्णमासं च, कर्म वैतानिकं च यत् / सूतकेऽपि त्यजेन्मोहात्, प्रायश्चित्ती पतेद्विजः / / इति मरीच्युक्तेः" डिंडी 21st : मरीचिने भी कहा है कि, अमावास्या और पूर्णिमाका श्राद्ध, वैतानिक कर्म इनको सूतकमें भी जो ब्राह्मण त्यागता है वह प्रायश्चित्त का भागी होता है।" (पृ. 834) "सूतके मृतके चैव, संध्याकर्म समाचरेत् / " डिंही टी.st : (अपरार्कमें पुलस्त्यजीने कहा है कि) "सूतक और मृत्युमें द्विजको संध्याकर्म करना चाहिये / / " (पृ. 836) लैङ्गेऽपि :- सूतके मृतके चैव, न दोषो राहुदर्शने / ____ तावदेव भवेच्छुद्धिर्यावन्मुक्तिर्न दृश्यते / / " "प्रयोगपारिजाते बृहस्पति : कन्याविवाहे संक्रान्तौ, सूतकं न कदाचन // " डिंही टी: लिंगपुराण में भी कहा है कि, राहु के सूतक (ग्रहण) में सूतक वा मृत्युमें दोष नहीं, इतनी ही शुद्धि होती है, जब तक (ग्रहण मुक्ति) न हो / प्रयोगपारिजातमें बृहस्पतिका वाक्य लिखा है कि, कन्या का विवाह और संक्रान्तिमें कदाचित् भी सूतक नहीं / " (पृ. 837) વાંચકો “નિર્ણયસિંધુ' ગ્રંથ કઢાવીને જોઈ શકે છે. લૌકિકોના આટલા બધા ગ્રંથો સૂતકના સમયમાં સૂતક ન પાળવાના, સૂતક ન માનવાના સમયો બતાવે છે. તેમાં દેવપૂજાનો પણ ઉલ્લેખ સ્પષ્ટ રૂપે કરે છે. લૌકિકો પણ સૂતકમાં દેવપૂજાને વજર્ય માનતા નથી. જ્યારે આપણાં શાસ્ત્રોમાં તો ક્યાંય સૂતકમાં શ્રી જિનપૂજા ન થાય તેવો ઉલ્લેખ જ નથી એટલે આપણે તો સૂતકમાં શ્રીજિનપૂજા બંધ કરવાની હોય જ નહિ. છતાં વર્તમાનમાં લૌકિકો કરતા પણ આગળ વધીને શ્રી જિનપૂજા બંધ કરાવવામાં આવે છે તે તદ્દન અવિચારી

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