Book Title: Sutak Sambandhi Shastriya Saral Samaj
Author(s): Vijayjaidarshansuri
Publisher: Jinagna Prakashan

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Page 52
________________ 57 સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ ગૃહસ્થ ધર્મમાં બાધક બને છે તે વ્યવહાર સ્વીકારાય શી રીતે ? સૂતકનો વ્યવહાર પાળવાનું દબાણ કરનારાઓ શ્રી જિનપૂજા, સાધુસેવા ઉપર પ્રતિબંધ મૂકે છે. માટે તેવો સૂતક વ્યવહાર પાળવાનો હોય જ નહિ. તે સ્પષ્ટ 'और पुत्रके जन्म हुआ पीछे प्रथम दिन में लौकिक स्थिति मर्यादा करते है। तीसरे दिन चंद्र-सूर्यका पुत्र को दर्शन कराते है छठे दिन में लौकिक धर्मजागरण करते है और 11 में दिन में अशुचिकर्म अर्थात् सूतिकर्म से निवृत्त होते है। और विविध प्रकार के भोजन उपस्कृत करके न्यातिवर्गादि को भोजन जिमाते है और तिनके समक्ष पुत्रका नाम स्थापन करते है। इतना विधि गृहस्थ व्यवहारादिका श्री आचारांग, विवाह पन्नति (भगवति), ज्ञाताधर्मकथा, दशाश्रुतस्कंध के आठवे अध्यायादि में चरितानुवादरुप प्रतिपादन करा है। तीर्थंकरके जन्म हुए तिनके माता-पिता जे कि श्रावक थे तिनोने भी यह विधि करा है।।' (इसवास्ते मूल आगमोमें चरितानुवाद करके गृहस्थव्यवहारका विधि सूचन करा है , परंतु विधिवादसें कथन करा हुआ हमको मालुम नही होता સમાલોચના: અહીં કૌંસમાં લખેલ વાક્ય સૂતકવાળાઓ છૂપાવી રાખે છે. પૂ. આત્મારામજી મ. તો સ્પષ્ટ લખે છે કે “સૂતક વગેરે ગૃહસ્થ વ્યવહાર વિધિવાદ રૂપે આગમમાં લખ્યો નથી. છતાં પૂ. આત્મારામજી મ.નાં નામે, સૂતક પાળવાનાં નામે, શ્રી જિનપૂજાનો પ્રતિબંધ ઠોકી બેસાડવાનો જે પ્રયત્ન થાય છે - તે ભયંકર પાપ છે. ગૃહસ્થ વ્યવહારને વિધિવાદ માનનારા ગીતાર્થ ન કહેવાય. 'तदपीछे सर्वस्नान करके अन्यमार्गे होकर अपने घरको आवे तीसरे दिन में चिताभस्म का पुत्रादि नदी में प्रवाह करे, तिसके हाड को तीर्थों में स्थापन करे / तिसके अगले दिन में स्नान करके शोक दूर करे / जिनचैत्यों में जाके परिजनसहित जिनबिंबो को विना स्पर्शे चैत्यवन्दन करे / पीछे धर्मागार में आ के गुरु को नमस्कार करे / तदपीछे स्वस्वकार्य में सर्व तत्पर होवे / " "स्वस्ववर्ण के अनुसार जन्म-मरण का सूतक एक सद्रुश होता है। और गर्भपात

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